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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक
अध्ययन-१८-सुसुमा सूत्र - २०८
'भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने अठारहवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?' हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था, (वर्णन) । वहाँ धन्य नामक सार्थवाह निवास करता था । भद्रा नामकी उसकी पत्नी थी । उस धन्य सार्थवाह के पुत्र, भद्रा के आत्मज पाँच सार्थवाहदारक थे । धन, धनपाल, धनदेव, धनगोप और धनरक्षित | धन्य सार्थवाह की पुत्री, भद्रा की आत्मजा और पाँचों पुत्रों के पश्चात् जन्मी हुई सुंसुमा नामक बालिका थी । उसके हाथ-पैर आदि अंगोपांग सुकुमार थे । उस धन्य सार्थवाह का चिलात नामक दास चेटक था उसकी पाँचों इन्द्रियाँ पूरी थीं और शरीर भी परिपूर्ण एवं मांस से अपचित था । वह बच्चों को खेलाने में कुशल भी था।
अत एव दासचेटक सुंसुमा बालिका का बालग्राहक नियत किया गया । वह सुंसुमा बालिका को कमर में लेता और बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों और कुमारिकाओं के साथ खेलता रहता था । उस समय वह चिलात दास-चेटक उन बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों और कुमारियों में से किन्ही की कौड़ियाँ हरण कर लेता- | इसी प्रकार वर्तक, आडोलिया, दड़ा, कपड़ा और साडोल्लक हर लेता था। किन्हींकिन्हीं के आभरण, माला और अलंकार हरण कर लेता था। किन्हीं पर आक्रोश करता, हँसी उड़ाता, ठग लेता, भर्त्सना करता, तर्जना करता और किसी को मारता-पीटता था।
तब वे बहुत-से लड़के, लड़कियाँ, बच्चे, बच्चियाँ, कुमार और कुमारिकाएं रोते हुए, चिल्लाते हुए, शोक करते हुए, आँसू बहाते हुए, विलाप करते हुए जाकर अपने-अपने माता-पिताओं से चिलात की करतूत कहते थे। उस समय बहत-से लडकों, लड़कियों, बच्चे, बच्चियों, कुमारों कुमारिकाओं के माता-पिता धन्य सार्थवाह के पास आते । आकर धन्य सार्थवाह को खेदजनक वचनों से, रुंवासे होकर उलाहने-देते थे और धन्य सार्थवाह को यह कहते थे । धन्य सार्थवाहने चिलात दास-चेटक को इस बात के लिए बार-बार मना किया, मगर चिलात दास-चेटक रुका नहीं, माना नहीं । धन्य सार्थवाह के रोकने पर भी चिलात दास-चेटक उन बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमार कुमारिकाओं में से किन्हीं की कौड़ियाँ हरण करता रहा और किन्हीं को यावत् मारता-पीटता रहा ।
तब वे बहुत लड़के-लड़कियाँ, बच्चे-बच्चियाँ, कुमार और कुमारिकाएं रोते-चिल्लाते गए, यावत् मातापिताओं से उन्होंने यह बात कह सूनाई । तब वे माता-पिता एकदम क्रुद्ध हुए, रुष्ट, कुपित, प्रचण्ड हुए, क्रोध से जल उठे और धन्य सार्थवाह के पास पहुँचे । पहुँचकर बहुत खेदयुक्त वचनों से उन्होंने यह बात उससे कही । तब धन्य सार्थवाह बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों और कुमारिकाओं के माता-पिताओं से यह बात सूनकर एकदम कुपित हुआ । उसने ऊंचे-नीचे आक्रोश-वचनों से चिलात दास-चेट पर आक्रोश किया, उसका तिरस्कार किया, भर्त्सना की, धमकी दी, तर्जना की और ऊंची-नीची ताड़नाओं से ताड़ना की और फिर उसे अपने घर से बाहर नीकाल दिया। सूत्र-२०९
धन्य सार्थवाह द्वारा अपने घर से नीकाला हुआ यह चिलात दासचेटक राजगृह नगर में शृंगाटकों यावत् पथों में अर्थात् गली-कूचों में, देवालयों में, सभाओं में, प्याउओं में, जुआरियों में, अड्डो में, वेश्याओं के घरों में तथा मद्यपानगृहों में मजे से भटकने लगा । उस समय उस दास-चेटक चिलात को कोई हाथ पड़ककर रोकने वाला तथा वचन से रोकने वाला न रहा, अत एव वह निरंकुश बुद्धि वाला, स्वेच्छाचारी, मदिरापान में आसक्त, चोरी करने में आसक्त, मांसभक्षण में आसक्त, जुआ में आसक्त, वेश्यासक्त तथा पर-स्त्रियों में भी लम्पट हो गया । उस समय राजगृह नगर से न अधिक दूर और न अधिक समीप प्रदेश में, आग्नेयकोण में सिंहगुफा नामक एक चोरपल्ली थी। वह पल्ली विषम गिरिनितंब के प्रान्त भाग में बसी हुई थी । बाँस की झाड़ियों के प्राकार से घिरी हुई थी । अलगअलग टेकरियों के प्रपात रूपी परिखा से यक्त थी । उसमें जाने-आने के लिए एक ही दरवाजा था, परन्तु भाग
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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