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________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने पूर्वापराह्न काल के समय कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और काम्पिल्यपुर नगर के शृंगाटक आदि मार्गों में तथा वासुदेव आदि हजारों राजाओं के आवासों में, हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर बुलंद आवाज से यावत् बार-बार उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहो-'देवानुप्रियो ! कल प्रभात काल में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा और धृष्टद्युम्न की भगिनी द्रौपदी राजवरकन्या का स्वयंवर होगा । अत एव हे देवानुप्रियो ! आप सब द्रुपद राजा पर अनुग्रह करते हुए, स्नान करके यावत् विभूषित होकर, हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर, कोरंट वृक्ष की पुष्पमाला सहित छत्र को धारण करके, उत्तम श्वेत चामरों से बिंजाते हुए, घोड़ों, हाथियों, रथों, तथा बड़े-बड़े सुभटों के समूह से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत्त होकर जहाँ स्वयंवर मंडप है, वहाँ पहुँचे । अलग-अलग अपने नामांकित आसनों पर बैठे और राजवरकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करें ।'' इस प्रकार की घोषणा करो और मेरी आज्ञा वापिस करो ।' तब वे कौटुम्बिक पुरुष इस प्रकार घोषणा करके यावत् राजा द्रुपद की आज्ञा वापिस करते हैं । तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को पुनः बुलाकर कहा-'देवानुप्रियो ! तुम स्वयंवर-मंडप में जाओ और उसमें जल का छिड़काव करो, उसे झाड़ो, लीपो और श्रेष्ठ सुगंधित द्रव्यों से सुगंधित करो । पाँच वर्ण के फूलों के समूह से व्याप्त करो। कृष्ण अगर, श्रेष्ठ कुंदुरुक्क और तुरुष्क आदि की धूप से गंध की वर्ती जैसा कर दो । उसे मंचों और उनके ऊपर मंचों से युक्त करो । फिर वासुदेव आदि हजारों राजाओं के नामों से अंकित अलग-अलग आसन श्वेत वस्त्र से आच्छादित करके तैयार करो । यह सब करके मेरी आज्ञा वापिस लौटाओ। वे कौटुम्बिक पुरुष भी सब कार्य करके यावत् आज्ञा लौटाते हैं। तत्पश्चात् वासुदेव प्रभृति अनेक हजार राजा कल प्रभात होने पर स्नान करके यावत् विभूषित हुए । श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुए। उन्होंने कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को धारण किया । उन पर चामर ढोरे जाने लगे। अश्व, हाथी, भटों आदि से परिवृत्त होकर सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ यावत् वाद्यध्वनि के साथ जिधर स्वयंवरमंडप था, उधर पहुँचे । मंडप में प्रविष्ट होकर पृथक्-पृथक् अपने-अपने नामों से अंकित आसनों पर बैठ गए । राजवरकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करने लगे । द्रुपद राजा प्रभात में स्नान करके यावत् विभूषित होकर, हाथी के स्कंध पर सवार होकर, कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को धारण करके अश्वों, गजों, रथों और उत्तम योद्धाओं वाली चतुरंगिणी सेना के साथ तथा अन्य भटों एवं रथों से परिवृत्त होकर काम्पिल्यपुर से बाहर नीकला। जहाँ स्वयंवरमंडप था, वासुदेव आदि बहुत-से हजारों राजा थे, वहाँ आकर वासुदेव वगैरह का हाथ जोड़कर अभिनन्दन किया और कृष्ण वासुदेव पर श्रेष्ठ श्वेत चामर ढोरने लगा। सूत्र-१७१ उधर वह राजवरकन्या द्रौपदी प्रभात काल होने पर स्नानगृह की ओर गई। वहाँ जाकर स्नानगृह में प्रविष्ट होकर उसने स्नान किया यावत् शुद्ध और सभा में प्रवेश करने योग्य उत्तम वस्त्र धारण किए । जिन प्रतिमाओं का पूजन किया । पूजन करके अन्तःपुर में चली गई। सूत्र - १७२ तत्पश्चात् अन्तःपुर की स्त्रियों ने राजवरकन्या द्रौपदी को सब अलंकारों से विभूषित किया । किस प्रकार ? पैरों में श्रेष्ठ नूपुर पहनाए यावत् वह दासियों के समूह से परिवृत्त होकर अन्तःपुर से बाहर नीकलकर जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी और जहाँ चार घंटाओं वाला अश्वरथ था, वहाँ आई | आकर क्रीड़ा करने वाली धाय और लेखिका दासी के साथ उस चार घंटा वाले रथ पर आरूढ़ हुई । उस समय धृष्टद्युम्न-कुमार ने द्रौपदी का सारथ्य किया, राजवरकन्या द्रौपदी काम्पिल्यपुर नगर के मध्य में होकर जिधर स्वयंवर-मंडप था, उधर पहुँची । रथ रोका गया और वह रथ से नीचे ऊतरी । क्रीड़ा कराने वाली धाय और लेखिका दासी के साथ उसने स्वयंवर मंडप में प्रवेश किया । दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके वासुदेव प्रभृति बहुसंख्यक हजारों राजाओं को प्रणाम किया। तत्पश्चात् राजवरकन्या द्रौपदी ने एक बड़ा श्रीदामकाण्ड ग्रहण किया । वह कैसा था ? पाटल, मल्लिका, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 127
SR No.034673
Book TitleAgam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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