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________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक तब सुकुमालिका आर्या ने गोपालिका आर्या के इस अर्थ का आदर नहीं किया, उसे अंगीकार नहीं किया। वचन अनादर करती हुई और अस्वीकार करती हुई उसी प्रकार रहने लगी । तत्पश्चात् दूसरी आर्याएं सुकुमालिका आर्या की बार-बार अवहेलना करने लगीं, यावत् अनादर करने लगीं और बार-बार इस अनाचार के लिए उसे रोकने लगी । निर्ग्रन्थ श्रमणियों द्वारा अवहेलना की गई और रोकी गई उस सुकुमालिका के मन में इस प्रकार का विचार यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ-'जब मैं गृहस्थावास में वसती थी, तब मैं स्वाधीन थी । जब मैं मुण्डित होकर दीक्षित हुई तब मैं पराधीन हो गई । पहले ये श्रमणियाँ मेरा आदर करती थीं किन्तु अब आदर नहीं करती हैं। अत एव कल प्रभात होने पर गोपालिका के पास से नीकलकर, अलग उपाश्रय में जा करके रहना मेरे लिए श्रेयस्कर होगा।' उसने ऐसा विचार करके दूसरे दिन प्रभात होने पर गोपालिका आर्या के पास से नीकलकर अलग उपाश्रय में जाकर रहने लगी। तत्पश्चात कोई मना करने वाला न होने से एवं रोकने वाला न होने से सकमालिका स्वच्छंदबद्धि होकर बार-बार हाथ धोने लगी यावत् जल छिड़ककर कायोत्सर्ग आदि करने लगी। वह पार्श्वस्थ हो गई। पार्श्वस्थ की तरह विहार करने-रहने लगी । वह अवसन्न हो गई और आलस्यमय विहार वाली हो गई। कुशीला कुशीलों के समान व्यवहार करने वाली हो गई । संसक्ता और संसक्त-विहारिणी हो गई । इस प्रकार उसने बहुत वर्षों तक साध्वी-पर्याय का पालन किया । अन्त में अर्ध मास की संलेखना करके, अपने अनुचित आचरण की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल-मास में काल करके, ईशान कल्प में, किसी विमान में देवगणिका के रूप में उत्पन्न हुई । वहाँ सुकुमालिका देवी की भी नौ पल्योपम की स्थिति हुई। सूत्र - १६८ उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीपमें, भरतक्षेत्रमें पाँचाल देशमें काम्पिल्यपुर नामक नगर था । (वर्णन) वहाँ द्रपद राजा था । (वर्णन) द्रपद राजा की चलनी नामक पटरानी थी और धष्टद्यम्न नामक कमार युवराज था । सुकुमालिका देवी उस देवलोक से, आयु भव और स्थिति को समाप्त करके यावत् देवीशरीर का त्याग करके इसी जम्बूद्वीप में, भरतवर्ष में, पंचाल जनपद में, काम्पिल्यपुर नगर में द्रुपद राजा की चुलनी रानी की कुंख में लड़के के रूप में उत्पन्न हुई । तत्पश्चात् चुलनी देवी ने नौ मास पूर्ण होने पर यावत् पुत्री को जन्म दिया। तत्पश्चात् बारह दिन व्यतीत हो जाने पर उस बालिका का ऐसा नाम रखा गया-'क्योंकि यह बालिका द्रुपद राजा की पुत्री है और चुलनी रानी की आत्मजा है, अतः हमारी इस बालिका का नाम 'द्रौपदी' हो । तब उसका गुणनिष्पन्न नाम 'द्रौपदी' रखा । तत्पश्चात् पाँच धायों द्वारा ग्रहण की हुई वह द्रौपदी दारिका पर्वत की गुफा में स्थित वायु आदि के व्याघात से रहित चम्पकलता के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगी । वह श्रेष्ठ राजकन्या बाल्यावस्था से मुक्त होकर यावत् उत्कृष्ट शरीर वाली भी हो गई। राजवरकन्या द्रौपदी को एक बार अन्तःपुर की रानियों ने स्नान कराय यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित किया । फिर द्रुपद राजा के चरणों की वन्दना करने के लिए उसके पास भेजा । तब श्रेष्ठ राजकुमारी द्रौपदी द्रुपद राजा के पास गई। उसने द्रुपद राजा के चरणों का स्पर्श किया । तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने द्रौपदी दारिका को अपनी गोद में बिठाया । फिर राजवरकन्या द्रौपदी के रूप, यौवन और लावण्य को देखकर उसे विस्मय हुआ । उसने राज-वरकन्या द्रौपदी से कहा- हे पुत्री ! मैं स्वयं किसी राजा अथवा युवराज की भार्या के रूप में तुझे दूंगा तो कौन जाने वहाँ तू सुखी हो या दुःखी ? मुझे ज़िन्दगीभर हृदय में दाह होगा । अत एव हे पुत्री ! मैं आज तेरा स्वयंवर रचता हूँ। अत एव तू अपनी ईच्छा से जिस किसी राजा या युवराज का वरण करेगी, वही तेरा भर्तार होगा। इस प्रकार कहकर इष्ट, प्रिय और मनोज्ञ वाणी से द्रौपदी को आश्वासन दिया । आश्वासन देकर बिदा कर दिया। सूत्र - १६९ तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने दूत बुलवाकर उससे कहा-देवानुप्रिय ! तुम द्वारवती नगरी जाओ । वहाँ तुम कृष्ण वासुदेव को, समुद्रविजय आदि दस दसारों को, बलदेव आदि पाँच महावीरों को, उग्रसेन आदि सोलह हजार मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 124
SR No.034673
Book TitleAgam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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