________________
हुँ.यावत्
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भन्ते ! क्या कारण है कि वह...यावत् समर्थ नहीं है ? गौतम ! मैं यह जानत कि तथा-प्रकार के अरूपी, अकर्मी, अरागी, अवेदी, अमोही, अलेश्यी, अशरीरी और उस शरीर से विप्रमुक्त जीव के विषय में ऐसा ज्ञात नहीं होता कि जीव में कालापन यावत् रूक्षपन है । इस कारण, हे वह देव पूर्वोक्त प्रकार से विकुर्वणा करने में समर्थ नहीं है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१७ - उद्देशक-३ सूत्र - ७०३
भगवन् ! शैलेशी-अवस्था-प्राप्त अनगार क्या सदा निरन्तर काँपता है, विशेषरूप से काँपता है, यावत् उन-उन भावों (परिणमनों) में परिणमता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। सिवाय एक परप्रयोग के।।
भगवन् ! एजना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की यथा-द्रव्य एजना, क्षेत्र एजना, काल एजना, भव एजना और भाव एजना।
भगवन् ! द्रव्य-एजना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार की । यथा-नैरयिकद्रव्यैजना, तिर्यग्योनिकद्रव्यैजना, मनुष्यद्रव्यैजना और देवद्रव्यैजना | भगवन् ! नैरयिकद्रव्यैजना को नैरयिकद्रव्यएजना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! क्योंकि नैरयिक जीव, नैरयिकद्रव्य में वर्तित थे, वर्तते हैं और वर्तेगे; इस कारण वहाँ नैरयिक जीवों ने. नैरयिकद्रव्य में वर्तते हए. नैरयिकद्रव्य की एजना की थी. करते हैं और करेंगे. इसी कारण से वह नैरयिकद्रव्यएजना कहलाती है । भगवन ! तिर्यग्योनिकद्रव्य-एजना, तिर्यग्योनिकद्रव्य-एजना क्यों कहलाती है ? गौतम ! पूर्ववत् । विशेष यह है कि नैरयिकद्रव्य के स्थान पर तिर्यग्योनिकद्रव्य कहना । इसी प्रकार यावत् देवद्रव्यएजना भी जानना।
भगवन् ! क्षेत्र-एजना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! वह चार प्रकार की कही गई है । यथानैरयिकक्षेत्र-एजना यावत् देवक्षेत्र-एजना । भगवन् ! इसे नैरयिकक्षेत्र-एजना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिक द्रव्य-एजना के समान सारा कथन करना । विशेष यह है कि नैरयिकद्रव्य-एजना के स्थान पर यहाँ नैरयिकक्षेत्र-एजना कहना चाहिए । इसी प्रकार देवक्षेत्र-एजना तक कहना चाहिए । इसी प्रकार काल-एजना, भव-एजना और भावएजना के विषय में समझ लेना चाहिए और इसी प्रकार नैरयिककालादि-एजना से लेकर देवभाव-एजना तक जानना चाहिए। सूत्र-७०४
भगवन् ! चलना कितने प्रकार की है ? गौतम ! चलना तीन प्रकार की है, यथा-शरीरचलना, इन्द्रियचलना और योगचलना । भगवन् ! शरीरचलना कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की यथा-औदारिकशरीर-चलना, यावत् कार्मणशरीरचलना । भगवन् ! इन्द्रियचलना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की यथाश्रोत्रेन्द्रियचलना यावत् स्पर्शेन्द्रियचलना । भगवन् ! योगचलना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार की यथा-मनोयोगचलना, वचनयोगचलना और काययोगचलना।
भगवन् ! औदारिकशरीर-चलना को औदारिकशरीर-चलना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जीवों ने औदारिकशरीर में वर्तते हुए, औदारिकशरीर के योग्य द्रव्यों को, औदारिकशरीर रूप में परिणमाते हुए भूतकाल में औदारिकशरीर की चलना की थी, वर्तमान में चलना करते हैं, और भविष्य में चलना करेंगे, इस कारण से कहा जाता है । भगवन् ! वैक्रियशरीर-चलना को वैक्रियशरीर-चलना किस कारण कहा जाता है ? पूर्ववत् समग्र कथन करना चाहिए । विशेष यह है-औदारिकशरीर के स्थान पर वैक्रियशरीर में वर्तते हुए', कहना चाहिए । इसी प्रकार कार्मणशरीर-चलना तक कहना चाहिए।
भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय-चलना को श्रोत्रेन्द्रिय-चलना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! चूँकि श्रोत्रेन्द्रिय को धारण करते हए जीवों ने श्रोत्रेन्द्रिय-योग्य द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय-रूप में परिणमाते हए श्रोत्रेन्द्रिय-चलना की थी, करते हैं और करेंगे, इसी कारण से श्रोत्रेन्द्रिय-चलना को श्रोत्रेन्द्रिय-चलना कहा जाता है। इसी प्रकार यावत् स्पर्शेन्द्रिय-चलना तक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 96