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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक / वर्ग / उद्देशक / सूत्रांक होता है ? गौतम ! जीवों का अधिकरण आत्मप्रयोग से भी निष्पन्न होता है, परप्रयोग से भी और तदुभयप्रयोग से भी निष्पन्न होता है। भगवन्। ऐसा किस कारण से कहा है? गीतम अविरति की अपेक्षा से यावत् तदुभयप्रयोग से भी निष्पन्न होता है । इसलिए हे गौतम! ऐसा कहा है। इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना ।
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सूत्र- ६६५
भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के यथा - औदारिक यावत् कार्मण । भगवन् इन्द्रियाँ कितनी कही गई है ? गौतम ! पाँच, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय । भगवन् ! योग कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के, यथा-मनोयोग, वचनयोग और काययोग |
भगवन्! औदारिकशरीर को बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? गौतम ! वह अधिकरण भी है और अधिकरण भी है । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है ? गौतम ! अविरति के कारण वह यावत् अधिकरण भी है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, औदारिकशरीर को बांधता हुआ अधिकरणी है या अधिकरण है? गौतम पूर्ववत्। इसी प्रकार मनुष्य तक जानना। इसी प्रकार वैक्रियशरीर के विषय में भी जानना । विशेष यह है कि जिन जीवों के शरीर हों, उनके कहना।
भगवन्। आहारकशरीर बांधता हुआ जीव अधिकरणी हे या अधिकरण है? गौतम वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है। भगवन्। किस कारण से ऐसा कहा है? गौतम प्रमाद की अपेक्षा से। इसी प्रकार मनुष्य के विषय में जानना । तैजसशरीर का कथन औदारिकशरीर के समान जानना । विशेष यह है कि तैजस-शरीर सम्बन्धी वक्तव्य सभी जीवों के विषय में कहना । इसी प्रकार कार्मणशरीर को भी जानना ।
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भगवन् । श्रोत्रेन्द्रिय को बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है? गौतम ओदारिकशरीर के वक्तव्य के समान श्रोत्रेन्द्रिय के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए । परन्तु जिन जीवों के श्रोत्रेन्द्रिय हो, उनकी अपेक्षा ही यह कथन है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के विषय में जानना चाहिए। विशेष, जिन जीवों के जितनी इन्द्रियाँ हों, उनके विषय में उसी प्रकार जानना चाहिए।
भगवन् । मनोयोग को बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है? श्रोत्रेन्द्रिय के समान सब मनोयोग के विषय में भी कहना । वचनयोग के विषय में भी इसी प्रकार जानना । विशेष, वचनयोग में एकेन्द्रियों का कथन नहीं करना । इसी प्रकार काययोग के विषय में भी कहना । विशेष यह है कि काययोग सभी जीवों के होता है । वैमानिकों तक इसी प्रकार जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक-१६ - उद्देशक-२
सूत्र ६६६
राजगृह नगर में यावत् पूछा- भगवन् ! क्या जीवों के जरा और शोक होता है ? गौतम ! जीवों के जरा भी होती है और शोक भी होता है। भगवन्। किस कारण से जीवों को जरा भी होती है और शोक भी होता है? गीतम। जो जीव शारीरिक वेदना वेदते हैं, उन जीवों को जरा होती है और जो जीव मानसिक वेदना वेदते हैं, उनको शोक होता है इस कारण से हे गौतम ऐसा कहा गया है। इसी प्रकार नैरयिकों के भी समझ लेना। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों के विषय में भी जानना ।
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भन्ते ! क्या पृथ्वीकायिक जीवों के जरा और शोक होता है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के जरा होती है, शोक नहीं होता है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के जरा होती है, शोक क्यों नहीं होता है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव शारीरिक वेदना वेदते हैं, मानसिक वेदना नहीं वेदते इसी कारण से इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक जानना शेष जीवों का कथन सामान्य जीवों के समान वैमानिकों तक हे भगवन् । यह इसी प्रकार है।
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सूत्र - ६६७
उस काल एवं उस समय में शक्र देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर यावत् उपभोग करता हुआ विचरता था। वह इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की ओर अपने विपुल अवधिज्ञान का उपयोग लगा लगाकर जम्बूद्वीप में श्रमण भगवान
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती २ ) आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
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