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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक यावत् काल करके दूसरी बार राजगृह नगर के भीतर (विशिष्ट) वेश्या के रूप में उत्पन्न होगा। सूत्र-६५९ वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्य-पर्वत के पादमूल में बेभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा । वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता-पिता उचित शुल्क और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप में अर्पण करेंगे। वह उसकी भार्या होगी। वह इष्ट, कान्त, यावत् अनुमत, बहुमूल्य सामान के पिटारे के समान, तेल की कुप्पी के समान अत्यन्त सुरक्षित, वस्त्र की पेटी के समान सुसंगृहीत, रत्न के पिटारे के समान सुरक्षित तथा शीत, उष्ण यावत् परीषह उपसर्ग उसे स्पर्श न करें, इस दृष्टि से अत्यन्त संगोपित होगी। वह ब्राह्मण-पुत्री गर्भवती होगी और एक दिन किसी समय अपने ससुराल से पीहर ले जाई जाती हुई मार्ग में दावाग्नि की ज्वाला से पीड़ित होकर काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के अग्निकुमार देवों में देवरूप में उत्पन्न होगी। वहाँ से च्यवकर वह मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा। फिर वह केवलबोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा। तत्पश्चात मुण्डित होकर अगारवास का परित्याग करके अनगार धर्म को प्राप्त करेगा। किन्तु वहाँ श्रामण्य की विराधना करके काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यवकर वह मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि आदि पूर्ववत, यावत प्रव्रजित होकर चारित्र की विराधना करके काल के समय में काल करके दक्षिणनिकाय के नागकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यवकर वह मनुष्यशरीर प्राप्त करेगा, इत्यादि पूर्ववत् । दक्षिणनिकाय सुपर्णकुमार देवों में उत्पन्न होगा, फिर दक्षिणनिकाय के विद्युत्कुमार देवों में उत्पन्न होगा, इसी प्रकार अग्निकुमार देवों को छोड़कर यावत् के स्तनितकुमार देवों में देवरूपसे उत्पन्न होगा। ___ वह वहाँ से यावत् नीकलकर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, यावत् श्रामण्य की विराधना करके ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होगा । वह वहाँ से च्यवकर मनुष्य-शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा । यावत् चारित्र की विराधना किये बिना काल के अवसरमें काल करके सौधर्मकल्पमें देव रूपमें उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यवकर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि भी प्राप्त करेगा । वहाँ भी चारित्र की विराधना किये बिना काल कर ईशान देवलोक में देवरूपमें उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यवकर मनुष्य-शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि प्राप्त करेगा । वहाँ भी चारित्र की विराधना किये बिना काल करके सनत्कुमार कल्पमें देवरूपमें उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यवकर, सनत्कुमार के देवलोक के समान ब्रह्मलोक, महाशुक्र, आनत, आरण देवलोकोंमें उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिए । वहाँ से च्यवकर वह मनुष्य होगा, यावत् चारित्र की विराधना किये बिना काल करके सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देव के रूप में उत्पन्न होगा वहाँ से बिना अन्तर के च्यवकर महाविदेहक्षेत्र में, जो ये कुल हैं, जैसे कि-आढ्य यावत् अपराभूत कुल; तथाप्रकार के कुलों में पुरुष रूप से उत्पन्न होगा । दृढ़प्रतिज्ञ के समान यावत्-उत्तम केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न होगा । तदनन्तर (गोशालक का जीव) दृढ़प्रतिज्ञ केवली अतीत काल को उपयोगपूर्वक देखेंगे । अतीतकाल-निरीक्षण कर वे श्रमण-निर्ग्रन्थों को कहेंगे-हे आर्यो ! मैं आज से चिरकाल पहले गोशालक नामक मंखलिपुत्र था । मैंने श्रमणों की घात की थी। यावत् छद्मस्थ अवस्था में ही कालधर्म को प्राप्त हो गया था । आर्यो ! उसी महापाप-मूलक मैं अनादि-अनन्त और दीर्घमार्ग वाले चारगति रूप संसार-कान्तार में बारबार पर्यटन करता रहा । इसलिए हे आर्यो ! तुम में से कोई भी आचार्य-प्रत्यनीक, उपाध्याय-प्रत्यनीक आचार्य और उपाध्याय के अपयश करने वाले, अवर्णवाद करने वाले और अकीर्ति करनेवाले मत होना, संसाराटवीमें परिभ्रमण मत करना । उस समय दृढ़प्रतिज्ञ केवली से यह बात सूनकर और अवधारण कर वे श्रमणनिग्रन्थ भयभीत होंगे, त्रस्त होंगे, और संसार के भय से उद्विग्न होकर दृढ़प्रतिज्ञ केवली को वन्दन-नमस्कार करेंगे । वे उस स्थान की आलोचना और निन्दना करेंगे यावत् तपश्चरण स्वीकार करेंगे। दृढ़प्रतिज्ञ केवली बहुत वर्षों तक केवलज्ञानी-पर्याय का पालन करेंगे, अंत में भक्तप्रत्याख्यान करेंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-१५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 80
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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