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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक वहाँ से वह यावत् नीकलकर स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्राघात से मरकर दाहज्वर की वेदना से यावत् दूसरी बार पुनः छठी तमःप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नारकावासों में नैरयिक होगा । पुनः दूसरी बार स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके पंचम धूमप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला नैरयिक होगा । मरकर उरःपरिसॉं में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्राघात से यावत् मरकर दूसरी बार पंचम नरकपृथ्वी में, यावत् पुनः उरःपरिसॉं में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नारकावासों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होगा, यावत् वहाँ से नीकलकर सिंहों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र द्वारा मारा जाकर यावत् दूसरी बार चौथे नरक में उत्पन्न होगा। दूसरी बार सिंहों में उत्पन्न होगा। काल करके तीसरी बालुकाप्रभा नरकपृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होगा । वहाँ से नीकलकर पक्षियों में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् शस्त्राघात से मरकर फिर दूसरी बार तीसरी बालुकाप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् शस्त्राघात से मरकर दूसरी बार पक्षियों में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् नीकलकर सरीसृपों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र से मारा जाकर यावत् दूसरी बार भी शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके दूसरी बार पुनः सरीसृपों में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी की उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् नीकलकर संज्ञीजीवों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र द्वारा मारा जाकर यावत् काल करके असंज्ञीजीवों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्रा-घात से यावत् काल करके दूसरी बार इसी रत्नप्रभापृथ्वी में पल्योपम के असंख्यातवे भाग की स्थिति वाले नरका-वासों में नैरयिकरूप में उत्पन्न होगा।
वह वहाँ से नीकलकर जो ये खेचरजीवों के भेद हैं, जैसे कि-चर्मपक्षी, लोमपक्षी, समुद्गकपक्षी, विततपक्षी, उनमें अनेक लाख बार मर-मर कर बार-बार वहीं उत्पन्न होता रहेगा । सर्वत्र शस्त्र से मारा जाकर दाह-वेदना से काल के अवसरमें काल करके जो ये भूजपरिसर्प के भेद हैं, जैसे कि-गोह, नकुल इत्यादि यावत् जाहक आदि चौपाये जीवों में अनेक लाख बार मरकर बार-बार उन्हींमें उत्पन्न होगा । शेष सब खेचरवत् जानना, यावत् काल करके जो ये उरःपरिसर्प के भेद होते हैं, जैसे कि-सर्प, अजगर, आशालिका, महोरग आदि, इनमें अनेक लाख बार मर-मरकर बारबार इन्हीं में उत्पन्न होगा । यावत् वहाँ से काल करके जो ये चतुष्पद जीवों के भेद हैं, जैसे कि एक खुरवाला, दो खुर
ला गण्डीपद, सनखपद, इनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके जो ये जलचरजीव-भेद हैं, जैसे कि-मत्स्य, कच्छप यावत् सुंसुमार इत्यादि, उनमें लाख बार उत्पन्न होगा। फिर वहाँ से यावत् काल करके जो ये चतुरिन्द्रिय जीवों के भेद हैं, जैसे कि-अन्धिक, पौत्रिक इत्यादि,यावत गोमय-कीटों में अनेक लाख बार उत्पन्न होगा। फिर वहाँ से यावत् काल करके जो ये त्रीन्द्रियजीवों के भेद हैं, जैसे कि-उपचित यावत् हस्तिशौण्ड आदि, इनमें अनेक लाख बार मरकर पुनःपुनः उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् काल करके जो ये द्वीन्द्रिय जीवों के भेद हैं, जैसे कि-पुलाकृमि यावत् समुद्दलिक्षा इत्यादि, इनमें अनेक लाख बार मर मरकर, पुनः पुनः उन्हीं में उत्पन्न होगा।
फिर वहाँ से यावत् काल करके जो ये वनस्पति के भेद हैं, जैसे कि-वृक्ष, गुच्छ यावत् कुहुना इत्यादि; इनमें अनेक लाख बार मर मरकर यावत् पुनः पुनः इन्हीं में उत्पन्न होगा । विशेषतया कटुरस वाले वृक्षों और बेलों में उत्पन्न होगा । सभी स्थानों में शस्त्राघात से वध होगा। फिर वहाँ से यावत् काल करके जो ये वायुकायिक जीवों के भेद हैं, जैसे कि-पूर्ववायु, यावत् शुद्धवायु इत्यादि इनमें अनेक लाख बार मर मरकर पुनः पुनः उत्पन्न होगा । फिर वहाँ से काल करके जो ये तेजस्कायिक जीवों के भेद हैं, जैसे कि अंगार यावत् सूर्यकान्त मणिनिःसृत अग्नि इत्यादि, उनमें अनेक लाख बार मर मरकर पुनः पुनः उत्पन्न होगा । फिर वहाँ से यावत् काल करके जो ये अप्कायिक जीवों के भेद हैं, यथा-ओस का पानी, यावत् खाई का पानी इत्यादि; उनमें अनेक लाख बार-उत्पन्न होगा । सभी स्थानों में शस्त्र द्वारा घात होगा । वहाँ से यावत् काल करके जो ये पृथ्वीकायिक जीवों के भेद हैं, जैसे कि-पृथ्वी, शर्करा यावत् सूर्यकान्तमणि; उनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा, विशेषतया खर-बादर पृथ्वीकाकाय में उत्पन्न होगा । सर्वत्र शस्त्र से वध होगा । वहाँ से यावत् काल करके राजगृह नगर के बाहर वेश्यारूप में उत्पन्न होगा। वहाँ शस्त्र से वध होने से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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