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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक शतद्वारनगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में सुभूमिभाग नाम का उद्यान होगा, जो सब ऋतुओं में फल-पुष्पों से समृद्ध होगा, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् ।
उस काल उस समय में विमल नामक तीर्थंकर के प्रपौत्र-शिष्य सुमंगल होंगे । उनका वर्णन धर्मघोष अनगार के समान, यावत् संक्षिप्त-विपुल तेजोलेश्या वाले, तीन ज्ञानों से युक्त वह सुमंगल नामक अनगार, सुभूमिभाग उद्यान से न अति दूर और न अति निकट निरन्तर छठ-छठ तप के साथ यावत् आतापना लेते हुए विचरेंगे । वह विमलवाहन राजा किसी दिन रथचर्या करने के लिए नीकलेगा । जब सुभूमिभाग उद्यान से थोड़ी दूर रथचर्या करता हुआ वह विमलवाहन राजा, निरन्तर छठ-छठ तप के साथ आतापना लेते हुए सुमंगल अनगार को देखेगा; तब उन्हें देखते ही वह एकदम क्रुद्ध होकर यावत् मिसमिसायमान होता हुआ रथ के अग्रभाग से सुमंगल अनगार को टक्कर
नीचे गिरा देगा। विमलवाहन राजा द्वारा रथ के अग्रभाग से टक्कर मारकर समंगल अनगार को नीचे गिरा देने पर वह धीरे-धीरे उठेंगे और दूसरी बार फिर बाहें ऊंची करके यावत् आतापना लेते हुए विचरेंगे।
तब वह विमलवाहन राजा फिर दूसरी बार रथ के अग्रभाग से टक्कर मारकर नीचे गिरा देगा, अतः सुमंगल अनगार फिर दूसरी बार शनैः शनैः उठेंगे, अवधिज्ञान का उपयोग लगाकर विमलवाहनराजा के अतीतकाल को देखेंगे फिर वह कहेंगे- तुम वास्तव में विमलवाहन राजा नहीं हो, तुम देवसेन राजा भी नहीं हो, और न ही तुम महापद्म राजा हो; किन्तु तुम इससे पूर्व तीसरे भव में श्रमणों के घातक गोशालक नामक मंखलिपुत्र थे, यावत् तुम छद्मस्थ अवस्था में ही काल कर गए थे। उस समय समर्थ होते हुए भी सर्वानुभूति अनगार ने तुम्हारे अपराध को सम्यक् प्रकार से सहन कर लिया था, क्षमा कर दिया था, तितिक्षा की थी और उसे अध्यासित किया था। इसी प्रकार सुनक्षत्र अनगार ने भी समर्थ होते हुए यावत् अध्यासित किया था। उस समय श्रमण भगवान महावीर ने समर्थ होते हुए भी यावत् अध्यासित कर लिया था । किन्तु मैं इस प्रकार सहन यावत् अध्यासित नहीं करूँगा । मैं तुम्हें अपने तप-तेज से घोड़े, रथ और सारथि सहित एक ही प्रहार में कूटाघात के समान राख का ढेर कर दूँगा । जब सुमंगल अनगार विमलवाहन राजा से ऐसा कहेंगे, तब वह एकदम कुपित यावत् क्रोध से आगबबूला हो उठेगा और फिर तीसरी बार भी रथ के सिरे से टक्कर मारकर सुमंगल अनगार को नीचे गिरा देगा । तब सुमंगल अनगार अतीव क्रुद्ध यावत् कोपावेश से मिसमिसाहट करते हुए आतापनाभूमि से नीचे ऊतरेंगे और तैजस-समुद्घात करके सात-आठ कदम पीछे हटेंगे, फिर विमलवाहन राजा को अपने तप-तेज से घोड़े, रथ और सारथि सहित एक ही प्रहार से यावत् राख का ढेर कर देंगे।
भगवन् ! सुमंगल अनगार, अश्व, रथ और सारथि सहित (राजा विमलवाहन को) भस्म का ढेर करके, स्वयं काल करके कहाँ जाएंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ? गौतम ! सुमंगल अनगार बहुत-से उपवास, बेला, तेला, चौला, पंचौला यावत् विचित्र प्रकार के तपश्चरणों से अपनी आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय का पालन करेंगे । फिर एक मास की संलेखना से आठ भक्त अनशन का यावत् छेदन करेंगे और आलोचना एवं प्रतिक्रमण करके समाधिप्राप्त होकर काल के अवसर में काल करेंगे । फिर वे ऊपर चन्द्र, सूर्य, यावत् ग्रैवेयक विमानावासों का अतिक्रमण करके सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देवरूप से उत्पन्न होंगे । वहाँ सुमंगल देव की अजघन्यानुत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की स्थिति होगी। भगवन् ! वह सुमंगल देव उस देवलोक से च्यवकर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा? गौतम ! वह यावत् महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा। सूत्र-६५८
भगवन् ! सुमंगल अनगार द्वारा अश्व, रथ और सारथि-सहित भस्म किया हुआ विमलवाहन राजा कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह अधःसप्तम पृथ्वी में, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् उद्वर्त्त कर मत्स्यों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र के द्वारा वध होने पर दाहज्वर की पीड़ा से काल करके दूसरी बार फिर अधःसप्तम पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नारकावासों में नैरयिकरूप में उत्पन्न होगा । वहाँ से उद्वर्त्त कर फिर सीधा दूसरी बार मत्स्यों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर काल कर छठी तमःप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले नारकावासों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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