________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक माणिभद्र । फिर वे दोनों देव शीतल और गीले हाथों से उसके शरीर के अवयवों का स्पर्श करते हैं। उन देवों का जो अनुमोदन करता है, वह आशीविष रूप से कर्म करता है, और जो उन देवों का अनुमोदन नहीं करता, उसके स्वयं के शरीर में अग्निकाय उत्पन्न हो जाता है । वह अग्निकाय अपने तेज से उसके शरीर को जलाता है । इस प्रकार शरीर को जला देने के पश्चात् वह सिद्ध हो जाता है; यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देता है । यही वह शुद्ध पानक है।
उसी श्रावस्ती नगरी में अयंपुल नामका आजीविकोपासक रहता था । वह ऋद्धि सम्पन्न यावत् अपराभूत था वह हालाहला कुम्भारिन के समान आजीविक मत के सिद्धान्त से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था। किसी दिन उस अयंपुल आजीविकोपासक को रात्रि के पीछले प्रहर में कुटुम्बजागरणा करते हुए इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् संकल्प समुत्पन्न हुआ-हल्ला नामक कीट-विशेष का आकार कैसा बताया गया है ?' तदनन्तर उस आजीविकोपासक अयंपुल को ऐसा अध्यवसाय यावत् मनोगत-संकल्प उत्पन्न हुआ कि मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंखलिपत्र गोशालक, उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक, यावत सर्वज्ञ-सर्वदर्शी हैं। वे इसी श्रावस्ती नगरी में हालाहला कुम्भारिन की दुकान में आजीविकसंघ सहित आजीविक-सिद्धान्त से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं अतः कल प्रातःकाल यावत् तेजी से जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर मंखलिपुत्र गोशालक को वन्दना यावत् पर्युपासना करके ऐसा यह प्रश्न पूछना श्रेयस्कर होगा। दूसरे दिन प्रातः सूर्योदय होने पर स्नान-बलिकर्म किया। फिर अल्पभार और महामूल्य वाले आभूषणों से अपने शरीर को अलंकृत कर वह अपने घर से नीकला और पैदल चलकर श्रावस्ती नगरी के मध्य में से होता हुआ हालाहला कुम्भारिन की दुकान पर आया । मंखलिपुत्र-गोशालक को हाथ में आम्रफल लिए हुए, यावत् हालाहला कुम्भारिन को अंजलिकर्म करते हए, मिट्टी मिले हए जल से अपने शरीर के अवयवों को बार-बार सिंचन करते हुए देखा तो देखते ही लज्जित, उदास और वीडित हो गया और धीरे-धीरे पीछे खिसकने लगा।
जब आजीविक-स्थविरों ने आजीविकोपासक अयंपुल को लज्जित होकर यावत् पीछे जाते हए देखा, तो कहा-हे अयंपुल ! यहाँ आओ | आजीविक-स्थविरों द्वारा बुलाने पर अयंपुल आजीविकोपासक उनके पास आया और उन्हें वन्दना-नमस्कार करके उनसे न अन्यन्त निकट और न अत्यन्त दूर बैठकर यावत् पर्युपासना करने लगा। आजीविक-स्थविरों ने कहा-हे अयंपुल ! आज पीछली रात्रि के समय यावत् तुझे ऐसा मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि हल्ला की आकृति कैसी होती है ? इसके पश्चात् हे अयंपुल ! तुझे ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि मैं अपने धर्माचार्य...से पूछकर निर्णय करूँ, इत्यादि। हे अयंपल ! क्या यह बात सत्य है?' (अयंपल- हाँ, सत्य है। स्थविर-) हे अयंपल ! तम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंखलिपत्र गोशालक जो हालाहला कम्भारिन की दुकान में आम्रफल हाथमें लिए हुए यावत् अंजलिकर्म करते हुए विचरते हैं, वह वे भगवान गोशालक इस सम्बन्ध में इन आठ चरमों की प्ररूपणा करते हैं । यथा-चरम पान, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । हे अयंपुल ! जो ये तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशालक मिट्टी मिश्रित शीतल पानी से अपने शरीर के अवयवों पर सिंचन करते हुए यावत् विचरते हैं । इस विषय में भी वे भगवान चार पानक और चार अपानक की प्ररूपणा करते हैं । यावत्... इसके पश्चात् वे सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं । अतः हे अयंपुल ! तू जा और अपने इन धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशालक से अपने इस प्रश्न को पूछ । वह अयंपुल आजीविकोपासक हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ और वहाँ से उठकर गोशालक मंखलिपुत्र के पास जाने लगा। तत्पश्चात उन आजीविक स्थविरों ने उक्त आम्रफल को एकान्त में डालने का गोशालक को संकेत किया । इस पर मंखलिपुत्र गोशालक ने आजीविक स्थविरों का संकेत ग्रहण किया और उस आम्रफल को एकान्त में एक ओर डाल दिया।
इसके पश्चात् अयंपुल आजीविकोपासक मंखलिपुत्र गोशालक के पास आया और मंखलिपुत्र गोशालक की तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की, फिर यावत् पर्युपासना करने लगा । गोशालक ने पूछा- हे अयंपुल ! रात्रि के पीछले प्रहर में यावत् तुझे ऐसा मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ यावत् इसी से तू मेरे पास आया है, हे अयंपुल! क्या यह बात सत्य है ?' (अयंपुल) हाँ, सत्य है । (गोशालक-) (हे अयंपुल !) मेरे हाथ में वह आम्र की गुठली नहीं थी, किन्तु
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 73