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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक महावीर ने उन श्रमणोपासकों से कहा- आर्यो ! तुम श्रमणोपासक शंख की हीलना, निन्दा, कोसना, गर्दा और अवमानना मत करो । क्योंकि शंख श्रमणोपासक प्रियधर्मा और दृढ़धर्मा है । इसने सुदर्शन नामक जागरिका की है। सूत्र-५३२
गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और पूछा-भगवन् ! जागरिका कितने प्रकार की है ? गौतम ! जागरिका तीन प्रकार की कही गई है, यथा-वृद्ध-जागरिका, अबुद्ध-जागरिका और सुदर्शन-जागरिका । भगवन् ! किस हेतु से कहा जाता है ? गौतम ! जो उत्पन्न हुए केवलज्ञान-केवलदर्शन के धारक अरिहंत भगवान हैं, इत्यादि स्कन्दक-प्रकरण के अनुसार जो यावत् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हैं, वे बुद्ध हैं, वे बुद्ध-जागरिका करते हैं. जो ये अनगार भगवंत ईर्यासमिति, भाषासमिति आदि पाँच समितियों और तीन गप्तियों से यक्त यावत गप्त ब्रह्मचारी हैं, वे अबुद्ध हैं । वे अबुद्ध-जागरिका करते हैं । जो ये श्रमणोपासक, जीव-अजीव आदि तत्त्वों के ज्ञाता यावत् पौषधादि करते हैं, वे सुदर्शन-जागरिका करते हैं । इसी कारण से, हे गौतम ! तीन प्रकार की जागरिका यावत् सुदर्शन-जागरिका कही गई है। सूत्र-५३३
इसके बाद उस शंख श्रमणोपासक ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और पूछा- भगवन्! क्रोध के वश-आर्त बना हुआ जीव कौन-से कर्म बाँधता है ? क्या करता है ? किसका चय करता है और किसका उपचय करता है ? शंख ! क्रोधवश-आर्त बना हुआ जीव आयुष्यकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों की शिथिल बन्धन से बंधी हुई प्रकृतियों को गाढ़ बन्धन वाली करता है, इत्यादि प्रथम शतक में असंवृत अनगार के वर्णन के समान यावत् वह संसार में परिभ्रमण करता है, यहाँ तक जान लेना । भगवन् ! मान-वश-आर्त बना हुआ जीव क्या बाँधता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । क्रोधवशार्त्त जीवविषयक कथन के अनुसार जान लेना । इसी प्रकार माया-वशात जीव, तथा लोभावशात जीव के विषय में भी, यावत्-संसार में परिभ्रमण करता है, यहाँ तक जानना। श्रमण भगवान महावीर से यह फल सूनकर और अवधारण करके वे श्रमणोपासक उसी समय भयभीत, त्रस्त, दुःखित एवं संसारभय से उद्विग्न हुए। उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और जहाँ शंख श्रमणोपासक था, वहाँ उसके पास आए । शंख श्रमणोपासक को उन्होंने वन्दन-नमस्कार किया और फिर अपने उस अविनयरूप अपराध के लिए विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना करने लगे । इसके पश्चात् उन सभी श्रमणो-पासकों ने भगवान से कईं प्रश्न पूछे, इत्यादि सब वर्णन आलभिका के (श्रमणोपासकों के) समान जानना चाहिए, यावत् वे अपने-अपने स्थान पर लौट गए
भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करके पूछा-भगवन् ! क्या शंख श्रमणोपासक आप देवानुप्रिय के पास प्रव्रजित होने में समर्थ है? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; इत्यादि समस्त वर्णन ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक के समान कहना, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। यह इसी प्रकार है।
शतक-१२ - उद्देशक-२ सूत्र-५३४
उस काल और उस समय में कौशाम्बी नगरी थी । चन्द्रवतरण उद्यान था । उस कौशाम्बी नगरी में सहस्त्रानीक राजा का पौत्र, शतानीक राजा का पुत्र, चेटक राजा का दौहित्र, मृगावती देवी का आत्मज और जयन्ती श्रमणोपासिका का भतीजा उदयन नामक राजा था । उसी कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक राजा की पुत्रवधू, शतानीक राजा की पत्नी, चेटक राजा की पुत्री, उदयन राजा की माता, जयन्ती श्रमणोपासिका की भौजाई, मृगावती नामक देवी (रानी) थी । वह सुकुमाल हाथ-पैर वाली, यावत् सुरूपा, श्रमणोपासिका यावत् विचरण करती थी। उसी कौशाम्बी नगरी में सहस्त्रानीक राजा की पुत्री, शतानीक राजा की भगिनी, उदयन राजा की बूआ, मृगावती देवी की ननद और वैशालिक के श्रावक आर्हतों की पूर्व शय्यातरा जयन्ती नाम की श्रमणोपासिका थी । वह सुकुमाल यावत् सुरूपा और जीवाजीवादि तत्त्वों की ज्ञाता यावत विचरती थी।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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