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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग /उद्देशक/ सूत्रांक देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर जाता है । इसके बाद शुक्ल एवं परम शुक्ल होकर फिर वह सिद्ध होता है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है । भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१४ - उद्देशक-१० सूत्र-६३६
भगवन् ! क्या केवलज्ञानी छद्मस्थ को जानते-देखते हैं ? हाँ (गौतम !) जानते-देखते हैं । भगवन् ! केवलज्ञानी, छद्मस्थ के समान सिद्ध भगवन् भी छद्मस्थ को जानते-देखते हैं ? हाँ, (गौतम!) जानते-देखते हैं । भगवन् ! क्या केवलज्ञानी, आधोवधिक को जानते-देखते हैं ? हाँ, गौतम ! जानते-देखते हैं । इसी प्रकार परमावधिज्ञानी को भी (केवली एवं सिद्ध जानते-देखते हैं) । इसी प्रकार केवलज्ञानी एवं सिद्ध यावत् केवलज्ञानी को जानते-देखते हैं । इसी प्रकार केवलज्ञानी भी सिद्ध को जानते-देखते हैं । किन्तु प्रश्न यह है कि जिस प्रकार केवलज्ञानी सिद्ध को जानतेदेखते हैं, क्या उसी प्रकार सिद्ध भी (दूसरे) सिद्ध को जानते-देखते हैं ? हाँ, (गौतम!) वे जानते-देखते हैं।
भगवन् ! क्या केवलज्ञानी बोलते हैं, अथवा प्रश्न का उत्तर देते हैं ? हाँ, गौतम ! वे बोलते भी हैं और प्रश्न का उत्तर भी देते हैं । भगवन् ! केवली की तरह क्या सिद्ध भी बोलते हैं और प्रश्न का उत्तर देते हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं ? गौतम ! केवलज्ञानी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य एवं पुरुषकार-पराक्रम से सहित हैं, जबकि सिद्ध भगवान उत्थानादि यावत् पुरुषकार-पराक्रम से रहित हैं । इस कारण से, हे गौतम ! सिद्ध भगवान केवलज्ञानी के समान नहीं बोलते और न प्रश्न का उत्तर देते हैं।
भगवन् ! केवलज्ञानी अपनी आँखें खोलते हैं, अथवा मूंदते हैं? हाँ, गौतम ! वे आँखें खोलते और बंद करते हैं इसी प्रकार सिद्ध के विषय में पूर्ववत् इन दोनों बातों का निषेध समझना चाहिए । इसी प्रकार (केवल-ज्ञानी शरीर को) संकुचित करते हैं और पसारते भी हैं । इसी प्रकार वे खड़े रहते हैं; वसति में रहते हैं एवं निषीधिका करते हैं।
भगवन् ! क्या केवलज्ञानी रत्नप्रभापृथ्वी को यह रत्नप्रभापृथ्वी है इस प्रकार जानते-देखते हैं ? हाँ (गौतम !) वे जानते-देखते हैं । भगवन् ! केवली की तरह क्या सिद्ध भी, यह रत्नप्रभापृथ्वी है, इस प्रकार जानते-देखते हैं? हाँ, (गौतम !) वे जानते-देखते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक समझना । भगवन् ! क्या केवल-ज्ञानी सौधर्मकल्प को यह सौधर्मकल्प है:- इस प्रकार जानते-देखते हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । इसी प्रकार यावत् अच्युतकल्प के विषय में कहना । भगवन् ! क्या केवली भगवान ग्रैवेयकविमान को ग्रैवेयकविमान है। इस प्रकार जानते-देखते हैं ? हाँ, गौतम! हैं । इसी प्रकार (पाँच) अनुत्तर विमानों के विषय में (कहना) । भगवन् ! क्या केवलज्ञानी ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी को ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी है। इस प्रकार जानते-देखते हैं ? (हाँ, गौतम !) हैं।
भगवन् ! क्या केवलज्ञानी परमाणुपुद्गल को यह परमाणुपुद्गल है-इस प्रकार जानते-देखते हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में समझना चाहिए । इसी प्रकार यावत्- यह अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध हैइसी प्रकार जानते-देखते हैं, क्या वैसे ही सिद्ध भी अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को- अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है। इस प्रकार जानते-देखते हैं ? हाँ, (गौतम!) वे जानते-देखते हैं । भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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