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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक शतक-१४ - उद्देशक-९ सूत्र - ६३१ भगवन् ! अपनी कर्मलेश्या को नहीं जानने-देखने वाला भावितात्मा अनगार, क्या सरूपी (सशरीर) और कर्मलेश्या-सहित जीव को जानता-देखता है ? हाँ, गौतम ! भावितात्मा अनगार, जो अपनी कर्मलेश्या को नहीं जानता-देखता, वह सशरीर एवं कर्मलेश्या वाले जीव को जानता-देखता है । भगवन् ! क्या सरूपी, सकर्मलेश्य पुद् गलस्कन्ध अवभासित यावत् प्रभासित होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं । भगवन् ! वे सरूपी कर्मलेश्य पुद्गल कौन से हैं, जो अवभासित यावत प्रभासित होते हैं ? गौतम चन्द्र और सूर्य देवों के विमानों से बाहर नीकली हई लेश्याएं प्रकाशीत यावत् प्रभासित होती हैं, जिनसे सरूपी सकर्म लेश्य पुदगल यावत् प्रभासित होते हैं। सूत्र-६३२ भगवन् ! नैरयिकों के आत्त (सुखकारक) पुद्गल होते हैं अथवा अनात्त (दुःखकारक) पुद्गल होते हैं ? गौतम! उसके आत्त पुद्गल नहीं होते, अनात्त पुद्गल होते हैं । भगवन् ! असुरकुमारों के आत्त पुद्गल होते हैं, अथवा अनात्त ? गौतम ! उसके आत्त पुद्गल होते हैं, अनात्त पुद्गल नहीं होते । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के आत्त पुद्गल होते हैं अथवा अनात्त ? गौतम ! उसके आत्त पुद्गल भी होते हैं और अनात्त पुद्गल भी होते हैं । इसी प्रकार मनुष्यों तक कहना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में असुरकुमारों के समान कहना। भगवन् ! नैरयिकों के पुद्गल इष्ट होते हैं या अनिष्ट होते हैं ? गौतम ! उनके पुद्गल इष्ट नहीं होते, अनिष्ट पुद् गल होते हैं । जिस प्रकार आत्त पुद्गलों के विषय में कहा है, उसी प्रकार इष्ट, कान्त, प्रिय तथा मनोज्ञ पुद्गलों के विषय में कहना चाहिए। सूत्र-६३३ भगवन् ! महर्द्धिक यावत् महासुखी देव क्या हजार रूपों की विकुर्वणा करके, हजार भाषाएं बोलने में समर्थ है ? हाँ, (गौतम !) वह समर्थ है । भगवन् ! वह एक भाषा है या हजार भाषाएं हैं ? गौतम ! वह एक भाषा है, हजार भाषाएं नहीं। सूत्र - ६३४ उस काल, उस समय में भगवान गौतम स्वामी ने तत्काल उदित हुए जासुमन नामक वृक्ष के फूलों के समान लाल बालसूर्य को देखा । सूर्य को देखकर गौतमस्वामी को श्रद्धा उत्पन्न हुई, यावत् उन्हें कौतूहल उत्पन्न हुआ, फलतः जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके निकट आए और यावत् उन्हें वन्दन-नमस्कार किया और पूछा-भगवन्! सूर्य क्या है ? तथा सूर्य का अर्थ क्या है ? गौतम ! सूर्य शुभ पदार्थ है तथा सूर्य का अर्थ भी शुभ है । भगवन् ! सूर्य क्या है और सूर्य की प्रभा क्या है ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार छाया के और लेश्या के विषय में जानना। सूत्र - ६३५ भगवन् ! जो ये श्रमण निर्ग्रन्थ आर्यत्वयुक्त होकर विचरण करते हैं, वे किसकी तेजोलेश्या का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! एक मास के दीक्षापर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ वाणव्यन्तर देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है; दो मास के दीक्षापर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ असुरेन्द्र के सिवाय (समस्त) भवनवासी देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है । इसी प्रकार तीन मास की पर्याय वाला, (असुरेन्द्र-सहित) असुरकुमार देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है । चार मास की पर्याय वाला ग्रहगण-नक्षत्र-तारारूप ज्योतिष्क देवों की, पाँच मास की पर्याय वाला ज्योतिष्केन्द्र-ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य की, छह मास की पर्याय वाला सौधर्म और ईशान-कल्पवासी देवों की, सात मास की पर्याय वाला सनत्कुमार और माहेन्द्र देवों की, आठ मास की पर्याय वाला ब्रह्मलोक और लान्तक देवों की, नौ मास की पर्याय वाला महाशुक्र और सहस्रार देवों की, दस मास की पर्याय वाला आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवों की, ग्यारह मास की पर्याय वाला ग्रैवेयक देवों की और बारह मास की पर्याय वाला अनुत्तरौपपातिक मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 58
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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