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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक कालमास में काल करके कहाँ जाएगी? कहाँ उत्पन्न होगी? गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में विन्ध्याचल के पादमूल में स्थित माहेश्वरी नगरी में शाल्मली वृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी । वहाँ वह अर्चित, वन्दित और पूजित होगी; यावत् उसका चबूतरा लीपा-पोता हुआ होगा और वह पूजनीय होगा। भगवन् ! वह वहाँ से काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम शालवृक्ष के समान जानना । सूत्र-६२६
भगवन् ! दृश्यमान सूर्य की उष्णता से संतप्त, तृषा से पीड़ित और दावानल की ज्वाला से प्रज्वलित यह उदुम्बरयष्टिका कालमास में काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में पाटलिपुत्र नामक नगर में पाटली वृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी । वह वहाँ अर्चित, वन्दित यावत् पूजनीय होगी। भगवन ! वह यहाँ से काल करके कहाँ जाएगी? कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम ! पूर्ववत जानना।
उस काल, उस समय अम्बड परिव्राजक के सात सौ शिष्य ग्रीष्म ऋतु के समय में विहार कर रहे थे, इत्यादि समस्त वर्णन औपपातिक सूत्रानुसार, यावत्-वे आराधक हुए। सूत्र-६२७
भगवन् ! बहुत-से लोग परस्पर एक दूसरे से इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में भोजन करता है तथा रहता है, (इत्यादि प्रश्न) । हाँ, गौतम ! यह सत्य है; इत्यादि औपपातिकसूत्रमें कथित अम्बड-सम्बन्धी वक्तव्यता, यावत्-महर्द्धिक दृढप्रतिज्ञ होकर सर्व दुःख अन्त करेगा सूत्र - ६२८
भगवन् ! किसी को बाधा-पीड़ा नहीं पहुँचाने वाले अव्याबाध देव हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! अव्या-बाध देव, अव्याबाध देव किस कारण से कहे जाते हैं ? गौतम ! प्रत्येक अव्याबाध देव, प्रत्येक पुरुष की, प्रत्येक आँख की पलक पर दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य देवानुभाव और बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्यविधि दिखलाने में समर्थ हैं ऐसा करके वह देव उस पुरुष को किंचित् मात्र भी आबाधा या व्याबाधा नहीं पहुंचाता और न उसके अवयव का छेदन करता है । इतनी सूक्ष्मतासे वह देव नाट्यविधि दिखला सकता है । इस कारण, हे गौतम! वे अव्याबाध देव कहलाते हैं सूत्र - ६२९
भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, अपने हाथ में ग्रहण की हुई तलवार से, किसी पुरुष का मस्तक काट कर कमण्डलू में डालने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! वह किस प्रकार डालता है ? गौतम ! शक्रेन्द्र उस पुरुष के मस्तक को छिन्न-भिन्न करके डालता है । या भिन्न-भिन्न करके डालता है। अथवा वह कूट-कूट कर डालता है। या चूर्ण कर करके डालता है । तत्पश्चात् शीघ्र ही मस्तक के उन खण्डित अवयवों को एकत्रित करता है और पुनः मस्तक बना देता है। इस प्रक्रिया में उक्त पुरुष के मस्तक का छेदन करते हुए भी वह (शकेन्द्र) उस पुरुष को थोड़ी या अधिक पीड़ा नहीं पहुँचाता । इस प्रकार सूक्ष्मतापूर्वक मस्तक काट कर वह उसे कमण्डलु में डालता है। सूत्र-६३०
भगवन् ! क्या ज़म्भक देव होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं । भगवन् ! वे ज़म्भक देव किस कारण कहलाते हैं? गौतम ! जम्भक देव, सदा प्रमोदी, अतीव क्रीडाशील, कन्दर्प में रत और मोहन शील होते हैं । जो व्यक्ति उन देवों को क्रुद्ध हुए देखता है, वह महान् अपयश प्राप्त करता है और जो उन देवों को तुष्ट हुए देखता है, वह महान् यश को प्राप्त करता है। इस कारण, हे गौतम! वे जम्भक देव कहलाते हैं।
भगवन् ! जृम्भक देव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दस प्रकार के । अन्न-जृम्भक, पान-जृम्भक, वस्त्र-जृम्भक, लयन-जृम्भक, पुष्प-जृम्भक, फल-जृम्भक, पुष्प-फल-जृम्भक, विद्या-जृम्भक और अव्यक्त-जृम्भक | भगवन् ! ज़म्भक देव कहाँ निवास करते हैं ? गौतम ! सभी दीर्घ वैताढ्य पर्वतों में, चित्र-विचित्र यमक पर्वतों में तथा कांचन पर्वतों में निवास करते हैं । भगवन् ! जृम्भक देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! एक पल्योपम की । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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