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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक स्वाभाविक रूप से काल करता है । इसके बाद आहार के विषय में अमूर्च्छित यावत् अगृद्ध होकर आहार करता है। सूत्र - ६२२
भगवन् ! क्या लवसप्तम देव लवसप्तम होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं । भगवन् ! उन्हें लवसप्तम देव क्यों कहते हैं ? गौतम ! जैसे कोई तरुण पुरुष यावत् शिल्पकला में निपुण एवं सिद्धहस्त हो, वह परिपक्व, काटने योग्य अवस्था को प्राप्त, पीले पड़े हुए तथा पीले जाल वाले, शालि, व्रीहि, गेहूँ, जौ, और जवजव की बिखरी हुई नालों को हाथ से इकट्ठा करके मुट्ठी में पकड़कर नई धार पर चढ़ाई हुई तीखी दरांती से शीघ्रतापूर्वक ये काटे, ये काटे-इस प्रकार सात लवों को जितने समय में काट लेता है, हे गौतम ! यदि उन देवों का इतना अधिक आयुष्य होता तो वे उसी भवमें सिद्ध हो जाते, यावत सर्व दुःखों का अन्त कर देते । इसी कारण से. हे गौतम! उन देवों को लवसप्तम कहते हैं सूत्र-६२३
___ भगवन् ! क्या अनुत्तरौपपातिक देव, अनुत्तरौपपातिक होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं । भगवन् ! वे अनुत्तरौपपातिक देव क्यों कहलाते हैं ? गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देवों को अनुत्तर शब्द, यावत्-अनुत्तर स्पर्श प्राप्त होते हैं, इस कारण, हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देवों को अनुत्तरौपपातिक देव कहते हैं। भगवन् ! कितने कर्म शेष रहने पर अनुत्तरौपपातिक देव, अनुत्तरौपपातिक देवरूप में उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! श्रमणनिर्ग्रन्थ षष्ठ-भक्त तप द्वारा जितने कर्मों की निर्जरा करता है, उतने कर्म शेष रहने पर अनुत्तरौपपातिक-योग्य साधु, अनुत्तरौपपातिक देवरूप में उत्पन्न हुए हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१४ - उद्देशक-८ सूत्र - ६२४
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी और शर्कराप्रभा पृथ्वी का कितना अबाधा-अन्तर है ? गौतम ! असंख्यात हजार योजन का है । भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी और बालुकाप्रभापृथ्वी का कितना अबाधा-अन्तर है ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना | भगवन् ! अधःसप्तमपृथ्वी और अलोक का कितना अबाधा-अन्तर है ? गौतम! असंख्यात हजार योजन का है।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी और ज्योतिष्क-विमानों का कितना अबाधा-अन्तर है ? गौतम ! ७९० योजन। भगवन् ! ज्योतिष्क विमानों और सौधर्म-ईशानकल्पों का अबाधा-अन्तर कितना है ? गौतम ! यावत् असंख्यात योजन है। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प और सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्पों का कितना अबाधान्तर है ? गौतम ! (पूर्ववत् । भगवन् ! सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्प और ब्रह्मलोककल्प का अबाधान्तर कितना है ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प और लान्तककल्प के अबाधान्तर ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! लान्तककल्प और महाशुक्र कल्प का अबाधान्तर ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार महाशुक्रकल्प और सहस्रारकल्प का, सहस्रारकल्प और आनतप्राणतकल्पों का, आनत-प्राणतकल्पों और आरण-अच्युतकल्पों का, इसी प्रकार आरण-अच्युतकल्पों और ग्रैवेयक विमानों का, इसी प्रकार ग्रैवेयक विमानों और अनुत्तर विमानों का अबाधान्तर समझना।
भगवन् ! अनुत्तरविमानों और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी का अबाधान्तर कितना है ? गौतम ! १२ योजन है। भगवन् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी और अलोक का कितना अबाधान्तर है ? गौतम ! अबाधान्तर देशोन योजन का कहा गया है। सूत्र-६२५
भगवन् ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल, दावानल की ज्वाला से झुलसा हुआ यह शालवृक्ष काल मास में काल करके कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! यह शालवृक्ष, इसी राजगृहनगर में पुनः शालवृक्ष के रूपमें उत्पन्न होगा । वहाँ पर अर्चित, वन्दित, पूजित, सत्कृत, सम्मानित और दिव्य, सत्य, सत्यावपात, सन्निहितप्रातिहार्य होगा तथा इसका पीठ, लीपा-पोता हुआ एवं पूजनीय होगा । भगवन् ! वह शालवृक्ष वहाँ से मरकर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्रमें जन्म लेकर सिद्ध होगा, यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा।
भगवन् ! सूर्य के ताप से पीड़ित, तृषा से व्याकुल तथा दावानल की ज्वाला से प्रज्वलित यह शाल-यष्टिका
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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