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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक / वर्ग / उद्देशक / सूत्रांक प्रकार दशवें शतक के तीसरे उद्देशक के अनुसार समग्र रूप से चारों दण्डक कहना, यावत् महा-ऋद्धि वाली वैमानिक देवी, अल्पऋद्धि वाली वैमानिक देवी के मध्य में से होकर जा सकती है।
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भगवन् ! महर्द्धिक देव, अल्पर्द्धिक देव के मध्य में होकर जा सकता है ? हाँ, गौतम ! जा सकता है । भगवन् ! महर्द्धिक देव शस्त्राक्रमण करके जा सकता है या शस्त्राक्रमण किये बिना ही जा सकता है ? गौतम ! शस्त्राक्रमण करके भी जा सकता है और शस्त्राक्रमण किये बिना भी जा सकता है । भगवन् ! पहले शस्त्राक्रमण करके पीछे जाता है या पहले जाकर बाद में शस्त्राक्रमण करता है ? गौतम ! वह पहले शस्त्राक्रमण करके पीछे भी जा सकता है अथवा पहले जाकर बाद में भी शस्त्राक्रमण कर सकता है ।
सूत्र ६०६
भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के पुद्गलपरिणामों का अनुभव करते रहते हैं ? गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमनाम का अनुभव करते रहते हैं। इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी के नैरयिकों तक कहना। इसी प्रकार वेदना परिणाम का भी ( अनुभव करते हैं। इसी प्रकार जीवाभिगमसूत्र के नैरयिक उद्देशक समान यहाँ भी वे समग्र आलापक कहने चाहिए यावत् भगवन् अधः सप्तमपृथ्वी के नैरयिक. किस प्रकार के परिग्रहसंज्ञा परिणाम का अनुभव करते रहते हैं ? गौतम वे अनिष्ट यावत् अमनाम परिग्रहसंज्ञा परिणाम का अनुभव करते हैं, हे भगवन्। यह इसी प्रकार है, इसी प्रकार है ।
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शतक-१४ – उद्देशक-४
सूत्र ६०७
भगवन् ! क्या यह पुद्गल अनन्त, अपरिमित और शाश्वत अतीतकाल में एक समय तक रूक्ष स्पर्श वाला रहा. एक समय तक अरूक्ष स्पर्श वाला और एक समय तक रूक्ष और स्निग्ध दोनों प्रकार के स्पर्श वाला रहा ? (तथा) पहले करण के द्वारा अनेक वर्ण और अनेक रूप वाले परिणाम से परिणत हुआ और उसके बाद उस अनेक वर्णादि परिणाम के क्षीण होने पर वह एक वर्ण और एक रूप वाला भी हुआ था? हाँ, गीतम। यह पुद्गल...' अतीतकाल .... इत्यादि सर्वकथन, यावत् एक रूप वाला भी हुआ था। भगवन् । यह पुद्गल शाश्वत वर्तमान काल में एक समय तक...? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! पूर्वोक्त कथनानुसार जानना । इसी प्रकार अनन्त और शाश्वत अनागत काल में एक समय तक, इत्यादि प्रश्नोत्तर) । भगवन् । यह स्कन्ध अनन्त शाश्वत अतीत काल में, एक समय तक, इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् । गौतम पुद्गल के अनुसार स्कन्ध के विषय में कहना।
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सूत्र - ६०८
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भगवन्! क्या यह जीव अनन्त और शाश्वत अतीत काल में, एक समय में दुःखी, एक समय में अदुःखी तथा एक समय में दुःखी और अदुःखी था? तथा पहले करण द्वारा अनेक भाव वाले अनेकभूत परिणाम से परिणत हुआ था? और इसके बाद वेदनीयकर्म की निर्जरा होने पर जीव एकभाव वाला और एकरूप वाला था? हाँ, गौतम यह जीव...यावत् एकरूप वाला था । इसी प्रकार शाश्वत वर्तमान काल के विषय में भी समझना चाहिए । अनन्त अनागतकाल के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए ।
सूत्र - ६०९
भगवन् ! परमाणु-पुद्गल शाश्वत हैं या अशाश्वत ? गौतम ! वह कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम द्रव्यार्थरूप से शाश्वत हैं और वर्ण यावत् स्पर्श-पर्यायों की अपेक्षा से अशाश्वत हैं। हे गौतम! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि यावत् कथंचित् अशाश्वत हैं।
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सूत्र - ६१०
भगवन्! परमाणु-पुद्गल चरम है, या अचरम है? गौतम द्रव्य की अपेक्षा चरम नहीं, अचरम हैं; क्षेत्र की अपेक्षा कथंचित् चरम हैं और कथंचित् अचरम हैं: काल की अपेक्षा कदाचित् चरम हैं और कदाचित् अचरम हैं तथा भावादेश से भी कथंचित् चरम हैं और कथंचित् अचरम हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती २ ) आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
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