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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-१४ सूत्र-५९६
चौदहवें शतक के दस उद्देशक इस प्रकार हैं-चरम, उन्माद, शरीर, पुद्गल, अग्नि तथा किमाहार, संश्लिष्ट, अन्तर, अनगार और केवली।
शतक-१४ - उद्देशक-१ सूत्र-५९७
राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! (कोई) भावितात्मा अनगार, (जिसने) चरम देवलोक का उल्लंघन कर लिया हो, किन्तु परम को प्राप्त न हुआ हो, यदि वह इस मध्य में ही काल कर जाए तो भन्ते ! उसकी कौन-सी गति होती है, कहाँ उपपात होता है ? गौतम ! जो वहाँ परिपार्श्व में उस लेश्या वाले देवावास होते हैं, वही उसकी गति होती है और वहीं उसका उपपात होता है । वह अनगार यदि वहाँ जाकर अपनी पूर्वलेश्या को विराधता है, तो कर्मलेश्या से ही गिरता है और यदि वह वहाँ जाकर उस लेश्या को नहीं विराधता है, तो वह उसी लेश्या का आश्रय करके विचरता है सूत्र-५९८
भगवन् ! (कोई) भावितात्मा अनगार, जो चरम असुरकुमारावास का उल्लंघन कर गया और परम असुरकुमारावास को प्राप्त नहीं हुआ, यदि बीच में ही वह काल कर जाए तो उसकी कौन-सी गति होती है, उसका कहाँ उपपात होता है? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार स्तनितकुमारावास, ज्योतिष्कावास और वैमानिकावास पर्यन्त जानना
भगवन् ! नैरयिक जीवों की शीघ्र गति कैसी है ? और उनकी शीघ्रगति का विषय किस प्रकार का है? गौतम! जैसे कोई तरुण, बलवान एवं युगवान यावत् निपुण एवं शिल्पशास्त्र का ज्ञाता हो, वह अपनी संकुचित बाँह को शीघ्रता से फैलाए और फैलाई हुई बाँह को संकुचित करे; खुली हुई मुठ्ठी बंद करे और बंद मुट्ठी खोले; खुली हुई आँख बंद करे और बंद आँख खोले तो क्या नैरयिक जीवों की इस प्रकार की शीघ्र गति होती है तथा शीघ्र गति का विषय होता है ? (भगवन् !) यह अर्थ समर्थ नहीं है । (गौतम !) नैरयिक जीव एक समय की, दो समय की, अथवा तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होते हैं । नैरयिकों की ऐसी शीघ्र गति यावत् विषय हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना। एकेन्द्रियों में उत्कृष्ट चार समय की विग्रहगति कहना । शेष पूर्ववत् । सूत्र - ५९९
भगवन् ! क्या नैरयिक अनन्तरोपपन्नक हैं, परम्परोपपन्नक हैं, अथवा अनन्तरपरम्परानुपपन्नक हैं ? गौतम! नैरयिक अनन्तरोपपन्नक भी हैं, परम्परोपपन्नक भी हैं और अनन्तरपरम्परानुपपन्नक भी हैं । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा है कि नैरयिक यावत् अनन्तरपरम्परानुपपन्नक भी हैं ? गौतम ! जिन नैरयिकों को उत्पन्न हुए अभी प्रथम समय ही हुआ है, वे अनन्तरोपपन्नक हैं । जिन नैरयिकों को उत्पन्न हुए अभी दो, तीन आदि समय हो चूके हैं, वे परम्परोपपन्नक हैं और जो नैरयिक जीव नरक में उत्पन्न होने के लिए (अभी) विग्रहगति में चल रहे हैं, वे अनन्तरपरम्परानुपपन्नक हैं । इस कारण से हे गौतम ! नैरयिक जीव यावत् अनन्तर-परम्परानुपपन्नक भी हैं । इसी प्रकार निरन्तर यावत् वैमानिक तक कहना।
भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक नैरयिक, नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं, अथवा तिर्यञ्च मनुष्य या देव का आयुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक का आयष्य नहीं बाँधते, यावत देव का आयष्य भी नहीं बाँध परम्परोपपन्नक नैरयिक, क्या नैरयिक का आयुष्य यावत् देवायुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक का आयुष्य नहीं बाँधते, वे तिर्यञ्च का आयुष्य बाँधते हैं, मनुष्य का आयुष्य भी बाँधते हैं, (किन्तु) देवायुष्य नहीं बाँधते । भगवन् ! अनन्तर-परम्परानुपपन्नक नैरयिक, क्या नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे नैरयिक का आयुष्य नहीं बाँधते, यावत् देव का आयुष्य नहीं बाँधते । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । विशेषता यह है कि परम्परोपपन्नक पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्य नारकादि, चारों प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं। शेष पूर्ववत् समझना ।
भगवन् ! क्या नारक जीव अनन्तर-निर्गत हैं, परम्पर-निर्गत हैं या अनन्तर-परम्पर-अनिर्गत हैं ? गौतम !
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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