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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक आकाश में ऊड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! वह ऊड़ सकता है। भगवन् ! भावितात्मा अनगार पुष्करिणी के समान कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? (हे गौतम !) शेष पूर्ववत् ।
भगवन् ! क्या (पूर्वोक्त) विकुर्वणा मायी (अनगार) करता है, अथवा अमायी ? गौतम ! मायी विकुर्वणा करता है, अमायी (अनगार) विकुर्वणा नहीं करता । मायी अनगार यदि उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही कालधर्म को प्राप्त हो जाए तो उसके आराधना नहीं होती; इत्यादि तीसरे शतक के चतुर्थ उद्देशक के अनुसार यावत्-उसके आराधना होती है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१३ - उद्देशक-१० सूत्र-५९५
भगवन् ! छाद्मस्थिक समुद्घात कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का है । वेदनासमुद्घात इत्यादि, छाद्मस्थिक समुद्घातों के विषय में प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार यावत् आहारकसमुद्घात कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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