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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक मंजूषा हाथ में लेकर स्वयं ऊंचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! पूर्ववत् समझना । इसी प्रकार स्वर्णमंजूषा, रत्नमंजूषा, वज्रमंजूषा, वस्त्रमंजूषा एवं आभरणमंजूषा इत्यादि पूर्ववत् । इसी प्रकार बाँस की चटाई, वीरणघास की चटाई, चमड़े की चटाई य खाट आदि एवं कम्बल का बिछौना इत्यादि प्रश्नोत्तर पूर्ववत् कहना । इसी प्रकार लोहे का भार, तांबे का भार, कलई का भार, शीशे का भार, हिरण्य का भार, सोने का भार और वज्र का भार इत्यादि पूर्ववत् प्रश्नोत्तर कहना।
भगवन् ! जैसे कोई वग्गुलीपक्षी अपने दोनों पैर लटका-लटका कर पैरों को ऊपर और शिर को नीचा किये रहती है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी उक्त चमगादड की तरह अपने रूप की विकर्वणा करके स्वयं ऊंचे आकाश में ऊड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! वह ऊड़ सकता है । इसी प्रकार यज्ञोपवित-सम्बन्धी वक्तव्यता भी कहनी चाहिए।
(भगवन् !) जैसे कोई जलौका अपने शरीर को उत्प्रेरित करके पानी में चलती है; क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् । (गौतम !) वग्गुलीपक्षी के समान जानना चाहिए । भगवन् ! जैसे कोई बीजंबीज पक्षी अपने दोनों पैरों को घोड़े की तरह एक हाथ उठाता-उठाता हआ गमन करता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् ! (हाँ, गौतम ! ऊड़ सकता है), शेष पूर्ववत् । (भगवन् !) जिस प्रकार कोई पक्षीबिडालक एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष को लांघता-लांघता जाता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि प्रश्न । (हाँ, गौतम ! ऊड़ सकता है ।) शेष पूर्ववत् ।
(भगवन् !) जैसे कोई जीवंजीवक पक्षी अपने दोनों पैरों को घोड़े के समान एक साथ उठाता-उठाता गमन करता है; क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् । (हाँ, गौतम ! ऊड़ सकता है। शेष पूर्ववत् । (भगवन् !) जैसे कोई हंस एक किनारे से दूसरे किनारे पर क्रीड़ा करता-करता चला जाता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी हंसवत् विकुर्वणा करके गगन में ऊड़ सकता है ? (हाँ, गौतम ! ऊड़ सकता है) शेष पूर्ववत् (भगवन् !) जैसे कोई समुद्रवायस एक लहर से दूसरी लहर का अतिक्रमण करता-करता चला जाता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी..इत्यादि प्रश्न । पूर्ववत् समझना।
(भगवन् !) जैसे कोई पुरुष हाथ में चक्र लेकर चलता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी तदनुसार विकुर्वणा करके चक्र हाथ में लेकर स्वयं ऊंचे आकाश में ऊड़ सकता है ? (हाँ, गौतम!) सभी कथन रज्जुबद्ध-घटिका के समान जानना चाहिए । इसी प्रकार छत्र और चर्म के सम्बन्ध में भी कथन करना । (भगवन !) जैसे कोई पुरुष रत्न लेकर गमन करता है, (क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न) । (गौतम !) पूर्ववत् । इसी प्रकार वज्र, वैडूर्य यावत् रिष्टरत्न तक पूर्ववत् कहना।
इसी प्रकार उत्पल हाथ में लेकर, पद्म हाथ में लेकर एवं कुमुद हाथ में लेकर तथा जैसे कोई पुरुष यावत् सहस्त्रपत्र हाथ में लेकर गमन करता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । (हाँ, गौतम!) पूर्ववत् जानना । जिस प्रकार कोई पुरुष कमल की डंडी को तोड़ता-तोड़ता चलता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी स्वयं इस प्रकार के रूप की विकुर्वणा करके ऊंचे आकाश में ऊड़ सकता है ? (हाँ, गौतम!) शेष पूर्ववत् । जैसे कोई मृणालिका हो और वह अपने शरीर को पानी में डुबाए रखती है तथा उसका मुख बाहर बहता है; क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । (हाँ, गौतम!) शेष कथन वग्गुली के समान जानना।
(भगवन् !) जिस प्रकार कोई वनखण्ड हो, जो काला, काले प्रकाश वाला, नीला, नीले आभास वाला, हरा, हरे आभास वाला यावत् महामेघसमूह के समान प्रसन्नतादायक, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप हो; क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी-स्वयं वनखण्ड के समान विकुर्वणा करके ऊंचे आकाश में उड़ सकता है ? (हाँ, गौतम !) शेष पूर्ववत् । (भगवन् !) जैसे कोई पुष्करिणी हो, जो चतुष्कोण और समतीर हो तथा अनुक्रम से जो शीतल गंभीर जल से सुशोभित हो, यावत् विविध पक्षियों के मधुर स्वर-नाद आदि से युक्त हो तथा प्रसन्नतादायिनी, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो, क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी उस पुष्करिणी के समान रूप की विकुर्वणा करके स्वयं ऊंचे
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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