________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
सूत्र ५७१
शतक / वर्ग / उद्देशक / सूत्रांक
भगवन्। क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी, द्वीतिय शर्कराप्रभापृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में सबसे मोटी और चारों ओर सबसे छोटी है ? (हाँ, गौतम !) इसी प्रकार है । (शेष सब वर्णन) जीवाभिगमसूत्र के दूसरे नैरयिक उद्देशक में (अनुसार कहना चाहिए)।
सूत्र ५७२
भगवन् । इस रत्नप्रभापृथ्वी के नारकावासों के परिपार्श्व में जो पृथ्वीकायिक ( यावत् वनस्पतिकायिक जीव हैं, क्या वे महाकर्म, महाक्रिया, महा-आश्रव और महावेदना वाले हैं ?) इत्यादि प्रश्न । (हाँ, गौतम !) हैं, (इत्यादि पूर्ववत्) सूत्र - ५७३
!
!
भगवन् । लोक के आयाम का (मध्यभाग) कहाँ कहा गया है? गौतम इस रत्नप्रभापृथ्वी के आकाश खण्ड के असंख्यातवे भाग का अवगाहन करने पर लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहा गया है । भगवन् ! अधोलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ कहा गया है? गौतम चौथी पंकप्रभापृथ्वी के आकाशखण्ड के कुछ अधिक अर्द्धभाग का उल्लंघन करने के बाद अधोलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहा गया है। भगवन्! ऊर्ध्व-लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ बताया गया है ? गौतम सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोकों के ऊपर और ब्रह्मलोक कल्प के नीचे एवं रिष्ट नामक विमानप्रस्तट में ऊर्ध्वलोक की लम्बाई का मध्यभाग बताया गया है।
भगवन् तिर्यक्लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ बताया गया है? गौतम! इस जम्बूद्वीप के मन्दराचल के बहुसम मध्यभाग में इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर वाले और नीचले दोनों क्षुद्रप्रस्तों में तिर्यग्लोक के मध्य भाग रूप आठ रुचक- प्रदेश कहे गए हैं, उन (रुचक प्रदेशों में से ये दश दिशाएं नीकली हैं। यथा- पूर्वदिशा, पूर्व-दक्षिण दिशा इत्यादि, (शेष समग्र वर्णन) दशवें शतक के अनुसार, दिशाओं के दश नाम ये हैं; (यहाँ तक) कहना । सूत्र ५७४
!
भगवन् । इन्द्रा (पूर्व) दिशा के आदि में क्या है? वह कहाँ से नीकली है? उसके आदि में कितने प्रदेश हैं? उत्तरोत्तर कितने प्रदेशों की वृद्धि होती है ? वह कितने प्रदेश वाली है ? उसका पर्यवसान कहाँ होता है ? और उसका संस्थान कैसा है ? गौतम : ऐन्द्री दिशा के प्रारम्भ में रुचक प्रदेश है । वह रुचक प्रदेशों से नीकली है। उसके प्रारम्भ में दो प्रदेश होते हैं । आगे दो-दो प्रदेशों की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है । वह लोक की अपेक्षा से असंख्यातप्रदेश वाली है और अलोक की अपेक्षा से अनन्तप्रदेश वाली है। लोक-आश्रयी वह सादि- सान्त है और अलोक आश्रयी वह सादिअनन्त है । लोक-आश्रयी वह मुरज के आकर की है, और अलोक आश्रयी वह ऊर्ध्व-शकटाकार की है ।
भगवन् ! आग्नेयी दिशा के आदि में क्या है ? उसका उद्गम कहाँ से है ? उसके आदि में कितने प्रदेश हैं? वह कितने प्रदेशों के विस्तार वाली है ? वह कितने प्रदेशों वाली है? उसका अन्त कहाँ होता है ? और उसका संस्थान कैसा है ? गौतम ! आग्नेयी दिशा के आदि में रुचकप्रदेश हैं। उसका उद्गम भी रुचकप्रदेश से हैं। उसके आदि में एक प्रदेश है । वह अन्त तक एक-एक प्रदेश के विस्तार वाली है। वह अनुत्तर है । वह लोक की अपेक्षा असंख्यातप्रदेश वाली है और अलोक की अपेक्षा अनन्तप्रदेश वाली है । वह लोक आश्रयी सादि- सान्त है और अलोक आश्रयी सादिअनन्त है। उसका आकार टूटी हुई मुक्तावली के समान है। याम्या का स्वरूप ऐन्द्री के समान समझना चाहिए । नैऋती का स्वरूप आग्नेयी के समान मानना चाहिए। (संक्षेप में) ऐन्द्री दिशा के समान चारों दिशाओं का तथा आग्नेय दिशा के समान चारों विदिशाओं का स्वरूप जानना चाहिए ।
-
भगवन् ! विमला (ऊर्ध्व) दिशा के आदि में क्या है ? इत्यादि आग्नेयी के समान प्रश्न । गौतम ! विमल दिशा के आदि में रुचक प्रदेश है। वह रुचकप्रदेशों से नीकली है। उसके आदि में चार प्रदेश हैं। वह अन्त तक दो प्रदेशों के विस्तार वाली है। वह अनुत्तर है। लोक- आश्रयी वह असंख्यात प्रदेश वाली है, जबकि अलोक आश्रयी अनन्त प्रदेश वाली है, इत्यादि शेष सब वर्णन आग्नेयी के समान कहना चाहिए । विशेषता यह है कि वह रुचका - कार है । मा (अधो) दिशा के विषय में भी ( कहना चाहिए)।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती २ ) आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
Page 35