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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक सद्रूप है, पररूप की अपेक्षा से कहे जाने पर असद्रूप है और उभयरूप की अपेक्षा से अवक्तव्य है तथा सद्भावपर्याय वाले अपने एक देश की अपेक्षा से व्यपदिष्ट होने पर सद्रूप है तथा असद्भाव पर्याय वाले द्वीतिय देश से आदिष्ट होने पर, असद्रूप है । (इस दृष्टि से) कथंचित् सद्प और कथंचित् असद्रूप है । सद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा से आदिष्ट होने पर सद्रूप और सद्भाव-असद्भाव वाले दूसरे देश की अपेक्षा से द्विप्रदेशी स्कन्ध सद्प-असद्प उभयरूप होने से अवक्तव्य हैं । एक देश की अपेक्षा से असद्भाव पर्याय की विवक्षा से तथा द्वितीय देश के सद्भाव-असद्भावरूप उभय-पर्याय की अपेक्षा से द्विप्रदेशी स्कन्ध असद्रूप और अवक्तव्यरूप है।
भगवन ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है अथवा उससे अन्य है? गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध-कथंचित सदरूप है। कथंचित असदरूप है। सद-असद-उभयरूप होने से कथंचित अवक्तव्य है। कथंचित सदरूप और कथंचित असद रूप है । कथंचित् सद्रूप और अनेक असद्रूप हैं । कथंचित् अनेक असद्रूप तथा असद्रूप है । कथंचित् सद् रूप और सद-असद-उभयरूप होने से अवक्तव्य है। कथंचित आत्मा तथा अनेक सद-असदरूप होने से अवक्तव्य है कथंचित् आत्माएं (अनेक असद्रूप) तथा आत्मा-नो आत्मा उभयरूप से-अवक्तव्य है । कथंचित् असद्रूप तथा आत्मा उभयरूप होने से-अवक्तव्य है । कथंचित् असद्रूप तथा उभयरूप होने से-अवक्तव्य है । कथंचित् नो अनेक असद्रूप तथा उभयरूप होने से-अवक्तव्य हैं और कथंचित् सद्रूप, असद्प और उभयरूप होने से अवक्तव्य है
भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध-अपने आदेश से सद्रूप है; पर के आदेश से असद्रूप है, उभय के आदेश से उभयरूप होने से अवक्तव्य है । एक देश के आदेश से सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से असद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा और नो-आत्मारूप है। एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा और नो-आत्माएं हैं। बहुत देशों के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्माएं और नो आत्मा है । एक देश के आदेश से सद् भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से उभय-पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा और आत्मा तथा नो आत्मा-उभयरूप से अवक्तव्य है । एक देश के आदेश से, सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से, उभयपर्याय की विवक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध, आत्मा और आत्माएं तथा न आत्माएं, इस प्रकार उभयरूप से अवक्तव्य है । बहुत देशों के आदेश से सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से उभयपर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्माएं और आत्मा-नो आत्मा-उभयरूप से अवक्तव्य है । ये तीन भंग जानने चाहिए। एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से उभयपर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो आत्मा और आत्मा-नो आत्मा-उभयरूप से अवक्तव्य है । एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय को अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से और तदुभय-पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो-आत्मा और आत्माएं तथा नो आत्मा इस उभयरूप से अवक्तव्य है । बहुत देशों के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से, त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो-आत्माएं और आत्मा तथा नो-आत्मा इस उभयरूप से अवक्तव्य है । एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तभय पर्याय की अपेक्षा से, त्रिप्रदेशी स्कन्ध कथंचित् आत्मा, नो आत्मा और आत्मा-नो आत्मा-उभयरूप से अवक्तव्य है। इसलिए हे गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध को कथंचित् आत्मा, यावत्-आत्मानो आत्मा उभयरूप से अवक्तव्य कहा गया है।
भगवन् ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध सद्प है, अथवा असद्रूप है ? गौतम ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध-कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नो आत्मा है, आत्मा-नोआत्मा उभयरूप होने से अवक्तव्य है । कथंचित् आत्मा और नो आत्मा है; कथंचित् आत्मा और अवक्तव्य है; कथंचित् नो आत्मा और अवक्तव्य; कथंचित् आत्मा और नो आत्मा तथा आत्मा-नो आत्मा उभयरूप से अवक्तव्य है । कथंचित् आत्मा और नो आत्मा तथा आत्माएं और नो-आत्माएं उभय होने से अवक्तव्य है
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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