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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
गौतम प्रथमसमयउद्देशक के अनुसार जानना । हे भगवन्! यह इसी प्रकार है० ।
शतक / वर्ग / उद्देशक / सूत्रांक
सूत्र - १०५६
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इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हैं। इनमें से पहले, तीसरे और पाँचवें उद्देशक के पाठ एकसमान है । शेष आठ उद्देशक एकसमान पाठ वाले हैं। किन्तु चौथे, (छठे), आठवें और दसवें उद्देशक में देवों का उपपात तथा तेजोलेश्या का कथन नहीं करना ।
शतक- ३५ शतकशतक-२ से १२
सूत्र - १०५७
भगवन् कृष्णलेश्यी कृतयुग्म कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम इनका उपपात औघिक उद्देशक अनुसार समझना । किन्तु इन बातों में भिन्नता है । भगवन् ! क्या वे जीव कृष्ण-लेश्या वाले हैं? हाँ, गौतम हैं। भगवन् । वे कृष्णलेश्यी कृतयुग्म कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कितने काल तक होते हैं? गौतम : वे जघन्य एकसमय तक और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त्त तक होते हैं। उनकी स्थिति भी इसी प्रकार जानना शेष पूर्ववत् यावत् अनन्त बार उत्पन्न हो चूके हैं। इसी प्रकार क्रमशः सोलह महायुग्मों पूर्ववत् कहना। हे भगवन् । यह इसी प्रकार हैं० ।
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भगवन् ! प्रथमसमय-कृष्णलेश्यी कृतयुग्म कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? गौतम प्रथमसमयउद्देशक के समान जानना विशेष यह है- भगवन्! वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं? हाँ, गौतम वे कृष्णलेश्या वाले हैं । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० । औघिकशतक के ग्यारह उद्देशकों के समान कृष्णलेश्याविशिष्ट शतक के भी ग्यारह उद्देशक कहने चाहिए। प्रथम, तृतीय और पंचम उद्देशक के पाठ एक समा
। शेष आठ उद्देशकों के पाठ सदृश हैं। किन्तु इनमें से चौथे, (छठे, आठवें और दसवें उद्देशक में देवों की उत्पत्ति नहीं होती । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० । नीललेश्या वाले एकेन्द्रियों का शतक कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रियों के शतक के समान कहना चाहिए। इसके भी ग्यारह उद्देशकों का कथन उसी प्रकार है। हे भगवन् । यह इसी प्रकार है० । कापोतलेश्या सम्बन्धी शतक कृष्णलेश्याविशिष्ट शतक के समान जानना हे भगवन् यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है।
भगवन् । भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम । औघिकशतक के समान जानना । इनके ग्यारह ही उद्देशकों में विशेष बात यह है- भगवन् ! सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्म विशिष्ट एकेन्द्रिय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शेष कथन पूर्ववत् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० ।
भगवन् कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? गौतम ! कृष्णलेश्या-सम्बन्धी द्वीतिय शतक के समान जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० । नीललेश्या वाले भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मएकेन्द्रिय शतक का कथन तृतीय शतक के समान जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० ।
कापोतलेश्यीभवसिद्धिक एकेन्द्रियों के भी ग्यारह उद्देशकों सहित यह शतक चतुर्थ शतक समान जानना । इस प्रकार ये चार शतक भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव के हैं। इन चारों शतकों में- क्या सर्व प्राण यावत् सर्व सत्त्व पहले उत्पन्न हुए हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है इतना विशेष जानना । भवसिद्धिक-सम्बन्धी चार शतक अनुसार अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय के लेश्या सहित चार शतक कहने चाहिए। भगवन् सर्व प्राण यावत् सर्व सत्त्व पहले उत्पन्न
हैं ? पूर्ववत् | यह अर्थ समर्थ नहीं है । (इतना विशेष जानना ।) इस प्रकार ये बारह एकेन्द्रियमहायुग्म-शतक हैं । 'हे भगवन्! यह इसी प्रकार है० ।
शतक- ३५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती २ ) आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
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