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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक शतक-३३
शतकशतक-१ - उद्देशक-१ सूत्र - १०१८
भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक । भगवन् ! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक, अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक । भगवन् ! बादरपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम पूर्ववत् । इसी प्रकार अप्कायिक जीवों के चार भेद जानने चाहिए । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीव पर्यन्त जानना
भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! आठ । ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म | भगवन् ! पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! आठ । ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म । भगवन् ! अपर्याप्तबादर पृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! पूर्ववत् आठ । भगवन् ! पर्याप्तबादर पृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम! पूर्ववत् आठ । इसी प्रकार से यावत् पर्याप्तबादर वनस्पतिकायिक जीवों की कर्मप्रकृतियों समझना।
भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! सात भी बाँधते हैं और आठ भी । सात बाँधते हुए आयुकर्म को छोड़कर शेष सात तथा आठ बाँधते हुए सम्पूर्ण आठ बाँधते हैं । भगवन् ! पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् सात या आठ । भगवन् ! इसी प्रकार शेष सभी पर्याप्तबादर वनस्पतिकायिक पर्यन्त कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् ।
भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ वेदते हैं ? गौतम ! वे चौदह कर्म-प्रकृतियाँ वेदते हैं, यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म, श्रोत्रेन्द्रियावरण, चक्षुरिन्द्रियावरण, घ्राणेन्द्रियावरण, जिह्वेन्द्रियावरण, स्त्रीवेदावरण और पुरुषवेदावरण । इसी प्रकार चारों भेदों सहित, यावत्-हे भगवन् ! पर्याप्त-बादरवनस्पतिकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ वेदते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् चौदह । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३३ - शतकशतक-१- उद्देशक-२ सूत्र-१०१९
भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! दो प्रकार केसूक्ष्म अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक और बादर अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक । इसी प्रकार दो-दो भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त समझना।
भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव के कितनी कर्मप्रकृतियाँ हैं ? गौतम ! आठ यथाज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म । भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक बादरपृथ्वीकायिक के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही गई हैं ? गौतम ! आठ, यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म । इसी प्रकार अनन्तरोपपन्नक बादरवनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना । भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! आयुकर्म को छोड़कर शेष सात । इसी प्रकार यावत् अनन्तरोपपन्नक बादरवनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना।
भगवन ! अनन्तरोपपन्नक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकतियाँ वेदते हैं ? गौतम ! वे (पर्वोक्त) चौदह कर्मप्रकतियाँ वेदते हैं, यथा-पूर्वोक्त प्रकार से ज्ञानावरणीय यावत् पुरुषवेदबध्य (पुरुषवेदावरण) वेदते हैं । इसी प्रकार यावत अनन्तरोपपन्नक बादरवनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना। हे भगवन ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३३/१- उद्देशक-३ सूत्र-१०२०
भगवन् ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के-पृथ्वी-कायिक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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