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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक इत्यादि और औधिक उद्देशक के अनुसार इनके चार-चार भेद कहने चाहिए | भगवन् ! परम्परोपपन्नकअपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही गई हैं ? गौतम ! से औधिक उद्देशक अनुसार यावत् चौदह कर्मप्रकृतियाँ वेदते हैं; तक पूर्ववत् कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३३ /१ - उद्देशक-४ से ११ सूत्र-१०२१
अनन्तरावगाढ़ एकेन्द्रिय, अनन्तरोपपन्नक उद्देशक समान कहना । परम्परावगाढ़ एकेन्द्रिय, परम्परोपपन्नक उद्देशक समान जानना । अनन्तराहारक एकेन्द्रिय, अनन्तरोपपन्नक उद्देशक अनुसार जानना । परम्पराहारक एकेन्द्रिय, परम्परोपपन्नक उद्देशक अनुसार समझना।
अनन्तरपर्याप्तक एकेन्द्रिय, अनन्तरोपपन्नक समान जानना । परम्परपर्याप्तक एकेन्द्रिय परम्परोपपन्नक समान जानना । चरम एकेन्द्रिय परम्परोपपन्नक अनुसार जानना । इसी प्रकार अचरम एकेन्द्रिय भी जान लेना । ये सभी ग्यारह उद्देशक हुए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३३ - शतकशतक-२ सूत्र-१०२२
भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक । भगवन् ! कृष्णलेश्यी सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! औधिक उद्देशक अनुसार यहाँ भी प्रत्येक एकेन्द्रिय के चार-चार भेद कहना।
भगवन् ! कृष्णलेश्यी अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव को कितनी कर्मप्रकृतियाँ हैं ? गौतम ! औधिक उद्देशक अनुसार कर्मप्रकृतियाँ कहना । उसी प्रकार वे बाँधते हैं। उसी प्रकार वे वेदते हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है
भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के । इस अभिलाप से वनस्पतिकायिक पर्यन्त पर्ववत प्रत्येक के दो-दो भेद होते हैं। भगवन ! अनन्तरोपपन्नक कष्णलेश्यी सक्ष्मपथ्वीकायिक जीवों को कितनी कर्मप्रकृतियाँ हैं ? गौतम ! पूर्वोक्त अभिलाप से औधिक अनन्तरोपपन्नक के अनुसार वेदते हैं, तक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
भगवन ! परम्परोपपन्नक कष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के । यथापृथ्वीकायिक इत्यादि । इस प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त चार-चार भेद कहना । भगवन् ! परम्परोपपन्नक कृष्णलेश्यी अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ हैं ? गौतम ! औघिक परम्परोपपन्नक उद्देशक के अनुसार वेदते हैं तक कहना । औधिक एकेन्द्रियशतक के ग्यारह उद्देशक समान यावत् अचरम और चरम कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय पर्यन्त कृष्णलेश्यीशतक में भी कहना ।
शतक-३३- शतकशत सूत्र-१०२३
कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय शतक के समान नीललेश्यी एकेन्द्रिय जीवों का समग्र शतक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। सूत्र-१०२४
कापोतलेश्यी एकेन्द्रिय को इसी प्रकार शतक कहना । किन्तु कापोतलेश्या , ऐसा पाठ कहना। सूत्र-१०२५
भगवन् ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिकाइनके चार-चार भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त पूर्ववत् कहना। भगवन् ! भवसिद्धिक अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! प्रथम एकेन्द्रियशतक के समान भव-सिद्धिकशतक भी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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