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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक शतक-३२
उद्देशक-१ सूत्र-१०१६
भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उद्वर्तित होकर (मरकर) तुरन्त कहाँ जाते हैं और कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उद्वर्त्तन व्युत्क्रान्तिक पद अनुसार जानना । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उद्वर्तित होते हैं ? गौतम ! चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उद्वर्तित होते हैं । भगवन् ! ये जीव किस प्रकार उद्वर्तित होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला इत्यादि पूर्ववत् यावत् वे आत्मप्रयोग से उद्वर्तित होते हैं, परप्रयोग से नहीं।
भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उद्वर्तित होकर तुरन्त कहाँ जाते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के समान इनकी उद्वर्त्तना जानना । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक उद्वर्त्तना जानना । इस प्रकार क्षुद्रत्र्योज, क्षुद्रद्वापरयुग्म और क्षुद्रकल्योज जानना । परन्तु इनका परिमाण पूर्ववत् पृथक्-पृथक् कहना । शेष पूर्ववत् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३२ - उद्देशक-२ से २८ सूत्र-१०१७
भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से नीकलकर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? इसी प्रकार उपपातशतक के समान उद्वर्त्तनाशतक के भी अट्ठाईस उद्देशक जानना । विशेष यह है कि उत्पन्न के स्थान पर उद्वर्तित कहना । शेष पूर्ववत् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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