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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-३१ - उद्देशक-८ सूत्र-१०१०
कापोतलेश्यी भवसिद्धिक नैरयिक के चारों ही युग्मों का कथन औधिक कापोत उद्देशक अनुसार कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३१ - उद्देशक-९ से १२ सूत्र-१०११
भवसिद्धिक-सम्बन्धी चार उद्देशक समान अभवसिद्धिक-सम्बन्धी चारों उद्देशक कापोतलेश्या उद्देशकों तक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३१ - उद्देशक-१३ से १६ सूत्र-१०१२
इसी प्रकार लेश्या सहित सम्यग्दृष्टि के चार उद्देशक कहना । विशेष यह है कि सम्यग्दृष्टि का प्रथम और द्वीतिय, इन दो उद्देशकों में कथन है । पहले और दूसरे उद्देशक में अधःसप्तमनरकपृथ्वी में सम्यग्दृष्टि का उपपात नहीं कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३१ - उद्देशक-१७ से २० सूत्र-१०१३ मिथ्यादृष्टि के भी भवसिद्धिकों के समान चार उद्देशक कहने चाहिए।
शतक-३१ - उद्देशक-२१ से २४ सूत्र-१०१४
इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक के लेश्याओं सहित चार उद्देशक भवसिद्धिकों के समान कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३१ - उद्देशक-२५ से २८ सूत्र - १०१५
इसी प्रकार शुक्लपाक्षिक के भी लेश्या-सहित चार उद्देशक कहने चाहिए । यावत् भगवन् ! बालुकाप्रभापृथ्वी के कापोतलेश्या वाले शुक्लपाक्षिक क्षद्रकल्योज-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! पूर्ववत् । यावत् वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ये सब मिलाकर अट्ठाईस उद्देशक हुए।
शतक-३१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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