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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक भी इसी प्रकार जानना चाहिए । विशेष यह है कि सम्यक्त्व, औधिक ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान, इनके मध्य के दोनों समवसरणों में भवसिद्धिक हैं। शेष पूर्ववत् । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव नैरयिकों के सदृश जानना, किन्तु उनमें जो बोल पाये जाते हों, (वे सब कहने चाहिए) | मनुष्यों का कथन औधिक जीवों के समान है। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों का निरूपण असुरकुमारों के समान जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है
शतक-३०- उद्देशक-२ सूत्र-१०००
भगवन् ! क्या अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं ? गौतम ! वे क्रियावादी भी हैं,यावत् विनयवादी भी हैं। भगवन् ! क्या सलेश्य अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । प्रथम उद्देशक में नैरयिकों की वक्तव्यता समान यहाँ भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि अनन्तरोपपन्न नैरयिकों में से जिसमें जो बोल सम्भव हों, वही कहने चाहिए। सर्व जीवों की, यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता इसी प्रकार कहनी चाहिए, किन्तु अनन्तरोपपन्नक जीवों में जहाँ जो सम्भव हो, वहाँ वह कहना चाहिए।
भगवन् ! क्या क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक, नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नारक यावत् देव का आयुष्य नहीं बाँधते । इसी प्रकार अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक के विषय में समझना चाहिए । भगवन् ! क्या सलेश्य क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक नारकायुष्य बाँधते हैं ? गौतम !
यष्य यावत देवायष्य नहीं बाँधते । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना । इसी प्रकार सभी स्थानों में अनन्तरोपपन्नक नैरयिक, यावत अनाकारोपयुक्त जीव किसी भी प्रकार का आयष्यबन्ध नहीं करते हैं। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त समझना। किन्त जिसमें जो बोल सम्भव हों, वह उसमें कहना चाहिए।
भगवन् ! क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? गौतम ! वे भव-सिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं हैं। भगवन् ! अक्रियावादी ? गौतम ! वे भवसिद्धिक भी हैं और अभवसिद्धिक भी हैं । इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी भी समझने चाहिए । भगवन् ! सलेश्य क्रियावादी ? गौतम ! वे भव-सिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं हैं । इसी प्रकार इस अभिलाप से औधिक उद्देशक में नैरयिकों की वक्तव्यता समान यहाँ भी अनाकारयुक्त तक कहनी चाहिए । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए; किन्तु जिसमें जो बोल हो उसके सम्बन्ध में वह कहना चाहिए । उनका लक्षण यह है कि क्रियावादी, शुक्लपाक्षिक और सम्यग्-मिथ्यादृष्टि, ये सब भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं । शेष सब भवसिद्धिक भी हैं, अभवसिद्धिक भी हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है
शतक-३० - उद्देशक-३ सूत्र-१००१
भगवन् ! परम्परोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं ? इत्यादि । गौतम ! औधिक उद्देशकानुसार परम्परोप-पन्नक नैरयिक आदि (नारक से वैमानिक तक) हैं और उसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त समग्र उद्देशक तीन दण्डक सहित करना हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३० - उद्देशक-४ से ११ सूत्र-१००२
इसी प्रकार और इसी क्रम से बन्धीशतक में उद्देशकों की जो परिपाटी है, वही परिपाटी यहाँ भी अचरम उद्देशक पर्यन्त समझना । विशेष यह कि अनन्तर शब्द वाले चार उद्देशक एक गम वाले हैं। परम्पर शब्द वाले चार उद्देशक एक गम वाले हैं । इसी प्रकार चरम और अचरम वाले उद्देशकों के विषय में भी समझना चाहिए, किन्तु अलेश्यी, केवली और अयोगी का कथन यहाँ नहीं करना चाहिए। शेष पूर्ववत् है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हुए।
शतक-३० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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