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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक शतक-३१ उद्देशक-१ सूत्र-१००३ राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! क्षुद्रयुग्म कितने कहे हैं ? गौतम ! चार । यथा-कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज । भगवन् ! यह क्यों कहा जाता है कि क्षुद्रयुग्म चार हैं? गौतम ! जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में चार रहें, उसे क्षुद्रकृतयुग्म कहते हैं । जिस राशि में चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में तीन शेष रहें, उसे क्षुद्रत्र्योज कहते हैं । जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में दो शेष रहें, उसे क्षुद्रद्वापरयुग्म कहते हैं और जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हए अन्त में एक ही शेष रहे, उसे क्षुद्रकल्योज कहते हैं । इस कारण से हे गौतम ! यावत् कल्योज कहा है। भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिपरिमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यञ्चयोनिकों से ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते । इत्यादि व्युत्क्रान्ति-पद के नैरयिकों के उपपात के अनुसार कहना । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वे जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जिस प्रकार कोई कूदने वाला, कूदता-कूदता यावत् अध्यवसायरूप कारण से आगामी भव को प्राप्त करते हैं, इत्यादि पच्चीसवें शतक के आठवें उद्देशक में उक्त नैरयिक-सम्बन्धी वक्तव्यता के समान यहाँ भी कहना चाहिए कि यावत् वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते हैं। भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औधिक नैरयिकों समान रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के लिए भी कि वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते, तक कहना । इसी प्रकार शर्कराप्रभा से लेकर अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना चाहिए । व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार यहाँ भी उपपात जानना चाहिए । असंज्ञी जीव प्रथम नरक तक, सरीसृप द्वीतिय नरक तक और पक्षी तृतीय नरक तक उत्पन्न होते हैं, इत्यादि उपपात जानना । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! क्षुद्रत्र्योज-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इनका उपपात भी व्युत्क्रान्तिपद अनुसार जानना । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे एक समय में तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। शेष सभी कृतयुग्म नैरयिक समान जानना। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक समझना । भगवन् ! क्षुद्रद्वापरयुग्म-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसार जानना । किन्तु ये परिमाण में दो, छह, दस, चौदह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना । भगवन् ! क्षुद्रकल्योज-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसार जानना । किन्तु ये परिमाण में-एक, पाँच, नौ, तेरह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । भगवन् ! यह इसी प्रकार है। यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। शतक-३१ - उद्देशक-२ सूत्र-१००४ भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औधिक-गम अनुसार समझना यावत् वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते । विशेष यह है कि धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का उपपात व्युत्क्रान्तिपद अनुसार कहना । शेष पूर्ववत् ! भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण कृष्ण-लेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार तमःप्रभा और अधःसप्तम-पृथ्वी पर्यन्त कहना चाहिए । किन्तु उपपात सर्वत्र व्युत्क्रान्तिपद अनुसार जानना । भगवन् ! क्षुद्रत्र्योज-राशिप्रमाण (धूमप्रभापृथ्वी के) कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 226
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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