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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/ वर्ग /उद्देशक/ सूत्रांक एकमात्र तिर्यञ्च का आयुष्य बाँधते हैं । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतु-रिन्द्रिय जीवों का आयुष्यबन्ध पृथ्वीकायिक जीवों के तुल्य है । परन्तु सम्यक्त्व और ज्ञान में वे किसी भी आयुष्य का बन्ध नहीं करते । भगवन् ! क्या क्रियावादी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! इनका आयुष्यबन्ध मनः पर्यवज्ञानी के समान है। अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी चारों प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं । सलेश्य जीवों का निरूपण औधिक जीव के सदृश है । भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी क्रियावादी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक यावत् देव किसी का भी आयुष्य नहीं बाँधते । अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी चारों प्रकार का आयुष्यबन्ध करते हैं । नीललेश्यी और कापोतलेश्यी का आयुष्यबन्ध भी कृष्ण-लेश्यी के समान है । तेजोलेश्यी का आयुष्यबन्ध सलेश्य के समान है । परन्तु अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी जीव तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का आयुष्य बाँधते हैं । इसी प्रकार पद्मलेश्यी और शुक्ललेश्यी जीवों को कहना । कृष्णपाक्षिक अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी चारों ही प्रकार का आयुष्यबन्ध करते हैं । शुक्लपाक्षिकों का कथन सलेश्य के समान है । सम्यग्दृष्टि जीव मनःपर्यवज्ञानी के सदृश वैमानिक देवों का आयुष्यबन्ध करते हैं । मिथ्यादृष्टि का आयुष्यबन्ध कृष्णपाक्षिक के समान है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव एक भी प्रकार आयुष्यबन्ध नहीं करते। उनमें नैरयिकों के समान दो समवसरण होते हैं । ज्ञानी से लेकर अवधिज्ञानी तक के जीवों को सम्यग्दृष्टि जीवों के समान जानना । अज्ञानी से लेकर विभंगज्ञानी तक के जीवों को कृष्णपाक्षिकों के समान हैं । शेष सभी अनाकारोपयुक्त पर्यन्त जीवों को सलेश्य जीवों के समान कहना । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों के समान मनुष्यों को कहना । विशेष यह है कि मनः पर्यवज्ञानी और नोसंज्ञोपयुक्त मनुष्यों का आयुष्यबन्ध-कथन सम्यग्दृष्टि तिर्यञ्चयोनिक के समान है । अलेश्यी, केवलज्ञानी, अवेदी, अकषायी और अयोगी, ये औधिक जीवों के समान किसी भी प्रकार का आयुष्यबन्ध नहीं करते । शेष पूर्ववत् । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक जीवों को असुरकुमारों के समान जानना । भगवन् ! क्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? गौतम ! वे अभवसिद्धिक नहीं, भव-सिद्धिक हैं । भगवन् ! अक्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? गौतम ! वे भवसिद्धिक भी हैं और अभवसिद्धिक भी । इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी जीवों को समझना । भगवन् ! सलेश्य क्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? गौतम ! वे भवसिद्धिक हैं । भगवन् ! सलेश्य अक्रियावादी जीव भव - सिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक ? गौतम ! वे भवसिद्धिक भी हैं और अभवसिद्धिक भी हैं। इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी भी जानना । शुक्ललेश्यी पर्यन्त सलेश्य के समान जानना । भगवन् ! अलेश्यी क्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? गौतम ! वे भवसिद्धिक हैं । इस अभिलाप से कृष्णपाक्षिक तीनों समवसरणों में भजना से भवसिद्धिक हैं । शुक्लपाक्षिक जीव चारों समवसरणों में भवसिद्धिक हैं । सम्यग्दृष्टि अलेश्यी जीवों के समान हैं। मिथ्यादृष्टि जीव कृष्णमाभिक के सदृश हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव अज्ञानवादी और विनयवादी में अलेश्यी जीवों के समान भवसिद्धिक हैं। ज्ञानी से लेकर केवलज्ञानी तक भवसिद्धिक हैं । अज्ञानी से लेकर विभंगज्ञानी तक कृष्णपाक्षिकों के सदृश हैं । चारों संज्ञाओं से युक्त जीवों सलेश्य जीवों के समान हैं। नोसंज्ञोपयुक्त जीवों सम्यग्दृष्टि के समान हैं । सवेदी से लेकर नपुंसकवेदी जीवों सलेश्य जीवों के सदृश हैं । अवेदी जीवों सम्यग्दृष्टि के समान हैं । सकषायी यावत् लोभकषायी, सलेश्य जीवों के समान जानना । अकषायी जीव सम्यग्दृष्टि के समान जानना । सयोगी यावत् काययोगी जीव सलेश्यी के समान हैं। अयोगी जीव सम्यग्दृष्टि के सदृश हैं । साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव सलेश्य जीवों के सदृश जानना । इसी प्रकार नैरयिकों के विषय में कहना, किन्तु उनमें जो बोल हों, वह कहना । इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक जानना । पृथ्वीकायिक जीव सभी स्थानों में मध्य के दोनों समवसरणों में भवसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना चाहिए। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में दीपरत्नसागर कृत् " (भगवती-२ )" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद” Page 224
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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