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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक प्रकार कहना । विशेष यह है कि जिसमें जो बोल पाया जाता हो, वही कहना । इसी प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म से अन्तरायकर्म के सम्बन्ध में भी दण्डक कहना। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-२९ - उद्देशक-३ से ११ सूत्र-९९७
बन्धीशतक में उद्देशकों की जो परिपाटी कही है, यहाँ भी इस पाठ से समग्र उद्देशकों की वह परिपाटी यावत् अचरमोद्देशक पर्यन्त कहनी चाहिए। अनन्तर सम्बन्धी चार उद्देशकों की एक वक्तव्यता और शेष सात उद्देशकों की एक वक्तव्यता कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-२९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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