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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक शतक-३०
उद्देशक-१ सूत्र - ९९८
भगवन् ! समवसरण कितने कहे हैं? गौतम! चार, यथा-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी, विनयवादी।
भगवन् ! जीव क्रियावादी हैं, अक्रियावादी हैं, अज्ञानवादी हैं या विनयवादी हैं ? गौतम ! जीव क्रियावादी भी हैं, अक्रियावादी भी हैं, अज्ञानवादी भी हैं और विनयवादी भी हैं । भगवन् ! सलेश्य जीव क्रियावादी भी हैं? इत्यादि प्रश्न। गौतम! सलेश्य जीव क्रियावादी भी हैं यावत् विनयवादी भी हैं । इस प्रकार शुक्ललेश्यावाले जीव पर्यन्त जानना। भगवन् ! अलेश्य जीव क्रियावादी हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम! वे क्रियावादी हैं। भगवन् ! कृष्णपाक्षिक जीव क्रियावादी हैं ? गौतम ! कृष्णपाक्षिक जीव अक्रियावादी, अज्ञानवादी, विनयवादी हैं । शुक्लपाक्षिक जीवों को सलेश्य जीवों समान जानना । सम्यग्दृष्टि जीव, अलेश्य जीव के समान हैं । मिथ्यादृष्टि जीव, कृष्णपाक्षिक जीवों के समान हैं
भगवन् ! सम्यमिथ्या दृष्टि जीव क्रियावादी हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे अज्ञानवादी और विनयवादी हैं। ज्ञानी यावत् केवलज्ञानी जीव, अलेश्य जीवों के तुल्य हैं । अज्ञानी यावत् विभंगज्ञानी जीव, कृष्णपाक्षिक जीवों के समान हैं । आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त जीव सलेश्य जीवों के समान हैं । नोसंज्ञोपयुक्त जीवों का कथन अलेश्य जीवों के समान है । सवेदी से लेकर नपुंसकवेदी जीव तक सलेश्य जीवों के सदृश है । अवेदी जीवों अलेश्य जीवों के तुल्य हैं । सकषायी यावत् लोभकषायी जीवों सलेश्य जीवों के समान हैं । अकषायी जीवों अलेश्य जीवों के सदृश हैं । सयोगी से लेकर काययोगी पर्यन्त जीवों सलेश्य जीवों के समान हैं । अयोगी जीव, सलेश्य जीवों के समान हैं । साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव, सलेश्य जीवों के तुल्य हैं।
भगवन ! नैरयिक क्रियावादी हैं? इत्यादि प्रश्न | गौतम! वे क्रियावादी यावत विनयवादी भी होते हैं। भगवन! सलेश्य नैरयिक क्रियावादी होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे क्रियावादी यावत् विनयवादी भी हैं । इसी प्रकार कापोतलेश्य नैरयिकों तक जानना । कृष्णपाक्षिक नैरयिक क्रियावादी नहीं हैं। इसी प्रकार और इसी क्रम से सामान्य जीवों की वक्तव्यता समान अनाकारोपयुक्त तक वक्तव्यता कहना । विशेष यह है कि जिसके जो हो, वही कहना चाहिए, शेष नहीं कहना चाहिए । नैरयिकों समान स्तनितकुमार पर्यन्त कहना।
भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक क्रियावादी होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे अक्रियावादी भी हैं और अज्ञान वादी भी हैं । इसी प्रकार पृथ्वीकायिक आदि जीवों में जो पद संभवित हों, उन सभी पदों में अक्रियावादी और अज्ञानवादी हैं, ये ही अनाकारोपयुक्त पृथ्वीकायिक पर्यन्त होते हैं । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक सभी पदों में मध्य के दो समवसरण होते हैं । इनके सम्यक्त्व और ज्ञान में भी ये दो मध्यम समवसरण जानने चाहिए । पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों का कथन औधिक जीवों के समान है, किन्तु इनमें भी जिसके जो पद हों, वे कहने चाहिए मनुष्यों का समग्र कथन औधिक जीवों के सदृश है । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक जीवों का कथन असुरकुमारों के समान जानना ।
भगवन् ! क्रियावादी जीव नरकायु बाँधते हैं, तिर्यञ्चायु बाँधते हैं, मनुष्यायु बाँधते हैं अथवा देवायु बाँधते हैं ? गौतम ! क्रियावादी जीव मनुष्यायु और देवायु बाँधते हैं । भगवन् ! यदि क्रियावाद भवनवासी देवायुष्य बाँधते हैं, यावत् वैमानिक देवायुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे वैमानिक-देवायुष्य बाँधते हैं। भगवन् ! अक्रियावादी जीव नैरयिकायुष्य यावत् देवायुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकायुष्य यावत् देवायुष्य भी बाँधते हैं । इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी जीवों के आयुष्य-बन्ध को समझना।
भगवन् ! क्या सलेश्य क्रियावादी जीव नैरयिकायुष्य बाँधते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे नैरयिकायुष्य नहीं बाँधते इत्यादि सब औधिक जीव के समान सलेश्य में चारों समवसरणों का कथन करना । भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी क्रियावादी जीव, नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? इत्यादि । गौतम ! वे केवल मनुष्यायुष्य बाँधते हैं । कृष्णलेश्यी अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी जीव, नैरयिक आदि चारों प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं । इसी प्रकार
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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