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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक - २८ उद्देशक- १
शतक/ वर्ग /उद्देशक/ सूत्रांक
सूत्र - ९९२
भगवन् ! जीवों ने किस गति में पापकर्म का समर्जन किया था और किस गति में आचरण किया था ? गौतम! सभी जीव तिर्यंचयोनिकों में थे अथवा तिर्यंचयोनिकों और नैरयिकों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और देवों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, नैरयिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, नैरयिकों और देवों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, मनुष्यों और देवों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, नैरयिकों, मनुष्यों और देवों में थे ।
भगवन् ! सलेश्यी जीव ने किस गति में पापकर्म का समार्जन और किस गति में समाचरण किया था ? गौतम! पूर्ववत् । इसी प्रकार कृष्णलेश्यी जीवों यावत् अलेश्यी जीवों तक कहना । कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक ( से लेकर) अनाकारोपयुक्त तक ऐसा ही है ।
भगवन् ! नैरयिकों ने कहाँ पापकर्म का समार्जन और कहाँ समाचरण किया था ? गौतम ! सभी जीव तिर्यंचयोनिकों में थे, इत्यादि पूर्ववत् आठों भंग कहना चाहिए । इसी प्रकार सर्वत्र अनाकारोपयुक्त तक आठ-आठ भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना । इसी प्रकार ज्ञानावरणीय के विषय में भी जानना । अन्तरायिक तक इसी प्रकार जानना । इस प्रकार जीव से लेकर वैमानिक पर्यन्त ये नौ दण्डक होते हैं ।
शतक-२८ - उद्देशक - २
सूत्र - ९९३
भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों ने किस गति में पापकर्मों का समार्जन किया था, कहाँ आचरण किया था। गौतम ! वे सभी तिर्यंचयोनिकों में थे, इत्यादि पूर्वोक्त आठों भंगों कहना । अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों की अपेक्षा लेश्या आदि से लेकर यावत् अनाकारोपयोगपर्यन्त भंगों में से जिसमें जो भंग पाया जाता हो, वह सब विकल्प से वैमानिक तक कहना चाहिए । परन्तु अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों के जो-जो बोल छोड़ने योग्य हैं, उन-उन बोलों को बन्धीशतक के अनुसार यहाँ भी छोड़ देना चाहिए । इसी प्रकार अन्तरायकर्म तक नौ दण्डकसहित यह सारा उद्देशक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।'
शतक - २८ - उद्देशक- ३ से ११
सूत्र - ९९४
'बन्धीशतक' में उद्देशकों की परिपाटी समान आठों ही भंगों में जानना । विशेष यह है कि जिसमें जो बोल सम्भव हों, उसमें वे ही बोल यावत् अचरम उद्देशक तक कहने चाहिए । इस प्रकार वे सब ग्यारह उद्देशक हूँ । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक - २८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (भगवती-२ )" आगमसूत्र हिन्द- अनुवाद”
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