SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक शतक-२६ - उद्देशक-११ सूत्र-९९० भगवन् ! अचरम नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि प्रथम उद्देशक समान सर्वत्र प्रथम और द्वीतिय भंग पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक पर्यन्त कहना । भगवन् ! क्या अचरम मनुष्य ने पापकर्म बाँधा था ? किसी मनुष्य ने बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा, किसी ने बाँधा था, बाँधता है और आगे नहीं बाँधेगा, किसी मनुष्य ने बाँधा था, नहीं बाँधता है और आगे बाँधेगा । भगवन् ! क्या सलेश्यी अचरम मनुष्य ने पापकर्म बाँधा था ? गौतम ! पूर्ववत् अन्तिम भंग को छोड़कर शेष तीन भंग समान कहना । विशेष यह है कि जिन बीस पदों में वहाँ चार भंग कहे हैं उन पदों में से यहाँ आदि के तीन भंग कहने । यहाँ अलेश्यी, केवलज्ञानी और अयोगी के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए । शेष स्थानों में पूर्ववत् जानना । वाण-व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में नैरयिक समान कहना। भगवन् ! अचरम नैरयिक ने ज्ञानावरणीयकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पापकर्मबन्ध समान कहना। विशेष यह है कि सकषायी और लोभकषायी मनुष्यों में प्रथम और द्वीतिय भंग कहने चाहिए । शेष अठारह पदों में शेष तीन भंग कहने चाहिए । शेष सर्वत्र वैमानिक पर्यन्त पूर्ववत् जानना । दर्शनावरणीयकर्म के विषय में इसी प्रकार समझना । वेदनीयकर्म के विषय में सभी स्थानों में वैमानिक तक प्रथम और दीतिय भंग कहना । विशेष यह है कि अचरम मनुष्यों में अलेश्यी, केवलज्ञानी और अयोगी नहीं होते । भगवन ! अचरम नैरयिक ने क्या मोहनीय कर्म बाँधा था? पापकर्मबन्ध समान अचरम नैरयिक के विषय में समस्त कथन वैमानिक तक कहना | भगवन ! क्या अचरम नैरयिक ने आयुष्य कर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! प्रथम और तृतीय भंग जानना। इसी प्रकार नैरयिकों के बहुवचन-सम्बन्धी पदों में पहला और तीसरा भंग कहना । किन्तु सम्यग्मिथ्यात्व में केवल तीसरा भंग कहना । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए । पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक और तेजोलेश्या, इन सबमें तृतीय भंग होता है। शेष पदों में सर्वत्र प्रथम और तृतीय भंग कहना चाहिए। तेजस्कायिक और वायुकायिक के सभी स्थानों में प्रथम और तृतीय भंग कहना चाहिए। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए । विशेष यह है कि सम्यक्त्व, अवधिज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान इन चार स्थानों में केवल तृतीय भंग कहना चाहिए । पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों के सम्यगमिथ्यात्व में तीसरा भंग है । शेष पदों में सर्वत्र प्रथम और तृतीय भंग जानना । मनुष्यों के सम्यमिथ्यात्व, अवेदक और अकषाय में तृतीय भंग ही कहना । अलेश्यी, केवलज्ञानी और अयोगी के विषय में प्रश्न नहीं करना । शेष पदों में सभी स्थानों में प्रथम और तृतीय भंग हैं । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का कथन नैरयिकों समान । नाम, गोत्र और अन्तराय, कर्मों का बन्ध ज्ञानावरणीय कर्मबन्ध के समान से कहना । हे भगवन ! यह इसी प्रकार है। शतक-२६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 217
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy