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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसायनिवर्तित क्रियासाधन द्वारा उस स्थान को छोड़कर भविष्यत्काल में अगले स्थान को प्राप्त होता है, वैसे ही जीव भी अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा अर्थात् कर्मों द्वारा पूर्वभव को छोड़कर भविष्यकाल में उत्पन्न होने योग्य भव को प्राप्त होकर उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! उन जीवों की शीघ्रगति और शीघ्रगति का विषय कैसा होता है ? गौतम ! जिस प्रकार कोई पुरुष तरुण और बलवान हो, इत्यादि चौदहवें शतक के पहले उद्देशक अनुसार यावत् तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होते हैं । उन जीवों की वैसी शीघ्र गति।
भगवन् ! वे जीव परभव की आयु किस प्रकार बाँधते हैं ? गौतम ! अपने अध्यवसाय योग से निष्पन्न करणोपाय द्वारा परभव की आयु बाँधते हैं । भगवन् ! उन जीवों की गति किस कारण से प्रवृत्त होती है ? गौतम ! आयु के क्षय होने से, भव का क्षय होने से और स्थिति का क्षय होने से उनकी गति प्रवृत्त होती है । भगवन् ! वे जीव आत्म-ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं या पर की ऋद्धि से ? गौतम ! आत्म-ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं । भगवन ! वे जीव अपने कर्मों से उत्पन्न होते हैं या दूसरों के कर्मों से ? गौतम ! अपने कर्मों से । भगवन ! वे जीव अपने प्रयोग से उत्पन्न होते हैं या परप्रयोग से ? गौतम! अपने प्रयोग से।
भगवन् ! असुरकुमार कैसे उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! नैरयिकों के समान आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, तक कहना चाहिए। इसी प्रकार एकेन्द्रिय से अतिरिक्त, वैमानिक तक, (जानना) । एकेन्द्रियों के विषय में । विशेष यह है कि उनकी विग्रहगति उत्कृष्ट चार समय की होती है। शेष पूर्ववत् । हे भगवन ! यह इसी प्रकार है।
शतक-२५ - उद्देशक-९ सूत्र-९७१
भगवन् ! भवसिद्धिक नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ...इत्यादि पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त (कहना) ।
शतक-२५ - उद्देशक-१० सूत्र - ९७२
भगवन् ! अभवसिद्धिक नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ, इत्यादि पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त (कहना) ।
शतक-२५- उद्देशक-११ सूत्र- ९७३
भगवन् ! सम्यग्दृष्टि नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ...इत्यादि, एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त कहना।
शतक-२५ - उद्देशक-१२
सूत्र-९७४
भगवन् ! मिथ्यादृष्टि नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ.. इत्यादि पूर्ववत् । वैमानिक तक (कहना)।
शतक-२५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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