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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक - २६
शतक / वर्ग / उद्देशक / सूत्रांक
सूत्र- ९७५
भगवती श्रुतदेवता को नमस्कार हो। इस शतक में ग्यारह उद्देशक हैं जीव, लेश्याएं, पाक्षिक, दृष्टि, अज्ञान, ज्ञान, संज्ञाएं, वेद, कषाय, उपयोग और योग, ये ग्यारह स्थान हैं, जिनको लेकर बन्ध की वक्तव्यता कही जाएगी। शतक- २६ उद्देशक- १
सूत्र - ९७६
उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत् पूछा- भगवन् ! क्या जीवने पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा ? (अथवा क्या जीवने पापकर्म) बाँधा था, बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? (या जीवने पापकर्म) बाँधा था, नहीं बाँधता है और बाँधेगा ? अथवा बाँधा था, नहीं बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? गौतम किसी जीव ने पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा या किसी जीव ने पापकर्म बाँधा था, बाँधता है, किन्तु आगे नहीं बाँधेगा या किसी जीवने पापकर्म बाँधा था, अभी नहीं बाँधता है, किन्तु आगे बाँधेगा या किसी जीव ने पापकर्म बाँध था, अभी नहीं बाँधता है, आगे भी नहीं बाँधेगा ।
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भगवन्! सलेश्य जीव ने क्या पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा ? अथवा बाँधा था, बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? इत्यादि चारों प्रश्न । गौतम ! किसी लेश्या वाले जीव ने पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा; इत्यादि चारों भंग जानना । भगवन्। क्या कृष्णलेश्यी जीव पहले पापकर्म बाँधता था ? इत्यादि चारों प्रश्न | गौतम कोई पापकर्म बाँधता था, बाँधता है और बाँधेगा; तथा कोई जीव (पापकर्म) बाँधता था, बाँधता है, किन्तु आगे नहीं बाँधेगा । इसी प्रकार पद्मलेश्या वाले जीव तक समझना । सर्वत्र प्रथम और द्वीतिय भंग जानना । शुक्ल- - लेश्यी के सम्बन्ध में सलेश्यजीव के समान चारों भंग कहना ।
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भगवन्! अलेश्यी जीव ने क्या पापकर्म बाँधा था, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न गौतम उस जीव ने पापकर्म बाँधा था, किन्तु वर्तमान में नहीं बाँधता और बाँधेगा भी नहीं।
भगवन् क्या कृष्णपाक्षिक जीव ने पापकर्म बाँधा था? इत्यादि प्रश्न गौतम किसी जीव ने पापकर्म बाँधा था; इत्यादि पहला और दूसरा भंग जानना । भगवन् ! क्या शुक्लपाक्षिक जीव ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न | गौतम चारों ही भंग जानना ।
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सूत्र- ९७७
सम्यग्दृष्टि जीवों में (पूर्ववत्) चारों भंग जानना चाहिए। मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए।
ज्ञानी जीवों में चारों भंग पाए जाते हैं । आभिनिबोधिकज्ञानी से मनःपर्यवज्ञानी जीवों तक भी चारों ही भंग जानना । केवलज्ञानी जीवों में अन्तिम एक भंग अलेश्य जीवों के समान है। अज्ञानी जीवों में पहला और दूसरा भंग है । मति- अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी में भी पहला और दूसरा भंग जानना ।
आहार यावत् परिग्रह-संज्ञोपयुक्त जीवों में पहला और दूसरा भंग है। नोसंज्ञोपयुक्त जीवों में चारों भंग पाए जाते हैं । सवेदक जीवों में प्रथम और द्वीतिय भंग हैं । स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी में भी प्रथम और द्वीतिय भंग हैं। अवेदक जीवों में चारों भंग हैं।
सकषायी जीवों में चारों भंग पाए जाते हैं। क्रोध यावत् मानकषायी जीवों में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है। लोभकषायी जीवों में चारों भंग पाए जाते हैं। भगवन्! क्या अकषायी जीव ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न । गौतम किसी अकषायी जीव ने बाँधा था, किन्तु अभी नहीं बाँधता है. मगर भविष्य में बाँधेगा तथा किसी जीव ने बाँधा था, किन्तु अभी नहीं बाँधता है और आगे भी नहीं बाँधेगा।
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सयोगी जीवोंमें चारों भंग होते हैं। मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी जीवमें चारों भंग पाए जाते हैं। अयोगी जीव में अन्तिम एक भंग पाया जाता है। साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव में चारों ही भंग पाए जाते हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती २ ) आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
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