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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/ वर्ग /उद्देशक/ सूत्रांक कायविनय कितने प्रकार का है ? सात प्रकार का कहा- आयुक्त गमन, आयुक्त स्थान, आयुक्त निषीदन, आयुक्त उल्लंघन, आयुक्त प्रलंघन और आयुक्त सर्वेन्द्रिययोगयुंजनता । अप्रशस्त कायविनय कितने प्रकार का है ? सात प्रकार का अनायुक्त गमन यावत् अनायुक्त सर्वेन्द्रिययोगयुंजनता । (भगवन् !) लोकोपचारविनय के कितने प्रकार हैं ? (गौतम !) सात प्रकार का-अभ्यासवृत्तिता, परच्छन्दानुवर्तिता, कार्य-हेतु, कृत-प्रतिक्रिया, आर्त्तगवेषणता, देश-कालज्ञता और सर्वार्थ-अप्रतिलोमता । सूत्र - ९६६ वैयावृत्य कितने प्रकार का है ? दस प्रकार का - आचार्यवैयावृत्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष, कुल, गण, संघ और साधर्मिक की वैयावृत्य । सूत्र - ९६७ (भगवन् !) स्वाध्याय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) पाँच प्रकार का - वाचना, प्रतिपृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा | सूत्र - ९६८ (भगवन्!) ध्यान कितने प्रकार का ? (गौतम !) चार प्रकार का - आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान । आर्त्तध्यान चार प्रकार का कहा गया है । यथा-अमनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके वियोग की चिन्ता करना, मनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके अवियोग की चिन्ता करना, आतंक प्राप्त होने पर उसके वियोग की चिन्ता करना और परिसेवित या प्रीति- उत्पादक कामभोगों आदि की प्राप्ति होने पर उनके अवियोग की चिन्ता करना। आर्त्तध्यान के चार लक्षण कहे हैं, यथा- क्रन्दनता, सोचनता, तेपनता (अश्रुपात और परिवेदनता (विलाप) ) । रौद्रध्यान चार प्रकार का कहा है, यथा- (१) हिंसानुबन्धी, (२) मृषानुबन्धी, (३) स्तेयानुबन्धी और (४) संरक्षणाऽनुबन्धी । रौद्रध्यान के चार लक्षण हैं- ओसन्नदोष, बहुलदोष, अज्ञानदोष और आमरणान्तदोष । धर्मध्यान चार प्रकार का और चतुष्प्रत्यवतार है, आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय । धर्मध्यान के चार लक्षण हैं, आज्ञारुचि, निसर्गरुचि, सूत्ररुचि और अवगाढ़रुचि । धर्मध्यान के चार आलम्बन हैं, वाचना, प्रतिपृच्छना, परिवर्तना और धर्मकथा । धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं हैं, एकत्वानुप्रेक्षा, अनित्यानुप्रेक्षा, अशरणानुप्रेक्षा और संसारानुप्रेक्षा । शुक्लध्यान चार प्रकार का है और चतुष्प्रत्यवतार है, पृथक्त्ववितर्क - सविचार, एकत्ववितर्क- अविचार, सूक्ष्मक्रिया अनिवर्ती और समुच्छिन्नक्रिया- अप्रतिपाती । शुक्लध्यान के चार लक्षण हैं, क्षान्ति, मुक्ति (निर्लोभता), आर्जव और मार्दव । शुक्लध्यान के चार आलम्बन हैं, अव्यथा, असम्मोह, विवेक और व्युत्सर्ग । शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं हैं । अनन्तवर्तितानुप्रेक्षा, विपरिणामानुप्रेक्षा, अशुभानुप्रेक्षा और अपायानुप्रेक्षा । सूत्र - ९६९ (भन्ते !) व्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) दो प्रकार का द्रव्यव्युत्सर्ग और भावव्युत्सर्ग । (भगवन् !) द्रव्यव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) चार प्रकार का - गणव्युत्सर्ग, शरीरव्युत्सर्ग, उपधिव्युत्सर्ग और भक्तपानव्युत्सर्ग । (भगवन् !) भावव्युत्सर्ग कितने प्रकार का कहा है ? तीन प्रकार का - कषायव्युत्सर्ग, संसार-व्युत्सर्ग, कर्मव्युत्सर्ग । (भगवन् !) कषायव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) चार प्रकार का है । क्रोधव्युत्सर्ग, मानव्युत्सर्ग, मायाव्युत्सर्ग और लोभव्युत्सर्ग | (भगवन् !) संसारव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) चार प्रकार का-नैरयिकसंसारव्युत्सर्ग यावत् देवसंसारव्युत्सर्ग । (भगवन् !) कर्मव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) आठ प्रकार का है । ज्ञानावरणीयकर्मव्युत्सर्ग यावत् अन्तरायकर्मव्युत्सर्ग। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - २५ - उद्देशक- ८ सूत्र - ९७० राजगृह नगर में यावत् पूछा- भगवन् ! नैरयिक जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (भगवती-२ )" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद” Page 211
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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