________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक है? गौतम ! अनेक प्रकार का-स्थानातिग, उत्कुटुकासनिक इत्यादि औपपातिकसूत्र अनुसार यावत् सार्वगात्रप्रतिकर्मविप्रमुक्त तक।
(भगवन् !) प्रतिसंलीनता कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! चार प्रकार की-इन्द्रियप्रतिसंलीनता, कषाय प्रतिसंलीनता, योगप्रतिसंलीनता और विविक्तशय्यासनप्रतिसंलीनता । भगवन् ! इन्द्रियप्रतिसंलीनता कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की-श्रोत्रेन्द्रियविषय-प्रचारनिरोध अथवा श्रोत्रेन्द्रियविषयप्राप्त अर्थों में रागद्वेषवि-निग्रह, यावत् स्पर्शनेन्द्रियविषयप्रचारनिरोध अथवा स्पर्शनेन्द्रियविषयप्राप्त अर्थों में रागद्वेषविनिग्रह | भगवन् ! कषायप्रतिसंलीनता कितने प्रकार की है ? गौतम ! चार प्रकार की-क्रोधोदयनिरोध अथवा उदयप्राप्त क्रोध का विफलीकरण,यावत लोभोदयनिरोध अथवा उदयप्राप्त लोभ का विफलीकरण।
भगवन् ! योगप्रतिसंलीनता कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की-मनोयोगप्रतिसंलीनता, वचनयोगप्रतिसंलीनता और काययोगप्रतिसंलीनता । मनोयोगप्रतिसंलीनता किस प्रकार की है ? अकुशल मन का विरोध, कुशल मन की उदीरणा और मन को एकाग्र करना । वचनयोगप्रतिसंलीनता किस प्रकार की है ? अकुशल वचन का निरोध, कुशल वचन की उदीरणा और वचन की एकाग्रता करना । कायप्रतिसंलीनता किसे कहते हैं ? सम्यक् प्रकार से समाधिपूर्वक प्रशान्तभाव से हाथ-पैरों को संकुचित करना, कछुए के समान इन्द्रियों का गोपन करके स्थिर होना। विविक्तशय्यासनसेवनता किसे कहते हैं ? आराम अथवा उद्यानों आदि में, सोमिल-उद्देशक अनुसार, यावत निर्दोष शय्यासंस्तारक आदि उपकरण लेकर रहना।
(भगवन् !) वह आभ्यन्तर तप कितने प्रकार का है ? (गौतम !) छह प्रकार का प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग । (भगवन् !) प्रायश्चित्त कितने प्रकार का है ? (गौतम !) दस प्रकार का आलोचनार्ह यावत् पारांचिकाह।
(भगवन् !) विनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) सात प्रकार का-ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, मनविनय, वचनविनय, कायविनय और लोकोपचार विनय । भगवन् ! ज्ञानविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) पाँच प्रकार का आभिनिबोधिकज्ञानविनय यावत् केवलज्ञानविनय । यह है ज्ञानविनय।
(भगवन् !) दर्शनविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम!) दो प्रकार का-शुश्रूषाविनय और अनाशातना-विनय । (भगवन !) शुश्रूषाविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) अनेक प्रकार का-सत्कार, सम्मान इत्यादि सब वर्णन चौदहवें शतक के तीसरे उद्देशक अनुसार यावत् प्रतिसंसाधनता तक जानना चाहिए। (भगवन् !) अनाशात-नाविनय
है ? (गौतम!) पैंतालीस प्रकार का अरिहन्ति की अनाशातना, अरिहन्तप्रज्ञप्त धर्म की, आचार्यों की, उपाध्यायों की, स्थविरों की, कुल की, गण की, संघ की, क्रिया की, साम्भोगिक (साधर्मिक साधु-साध्वीगण) की, और आभिनिबोधिकज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक की अनाशातना इन पन्द्रह की भक्ति करना, इस प्रकार कुल ४५ भेद अनाशातनाविनय के हैं।
(भगवन् !) चारित्रविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) पाँच प्रकार का-सामयिकचारित्रविनय यावत् यथाख्यातचारित्रविनय।
वह मनोविनय कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का-प्रशस्तमनोविनय और अप्रशस्तमनोविनय । वह प्रशस्त मनोविनय कितने प्रकार का है ? सात प्रकार का-अपापक, असावध, अक्रिय, निरुपक्लेश-अनाश्रवकर, अच्छविकर और अभूताभिशंकित । अप्रशस्तमनोविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) सात प्रकार का-पापक, सावध, सक्रिय, सोपक्लेश, आश्रवकारी, छविकारी और भूताभिशंकित । (भगवन् !) वचनविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) दो प्रकार का प्रशस्तवचनविनय और अप्रशस्तवचनविनय । वह प्रशस्तवचनविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) सात प्रकार का अपापक, असावद्य यावत् अभूताभिशंकित । (भगवन् !) अप्रशस्तवचनविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम!) सात प्रकार का-पापक, सावद्य यावत् भूताभिशंकित ।।
कायविनय कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का-प्रशस्तकायविनय और अप्रशस्तकायविनय । प्रशस्त
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 210