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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक के आवासों को कहना । यावत् अनुत्तर-विमान यावत् अपराजित और सर्वार्थसिद्ध तक इसी प्रकार कहना।
भगवन् ! क्या यह जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पृथ्वीकायिकरूप से यावत् वनस्पतिकायिक रूप से, नरक रूप में, पहले उत्पन्न हुआ है ? हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार (उत्पन्न हो चूका है)।
भगवन् ! क्या सभी जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पृथ्वीकायिकरूप में यावत् वनस्पतिकायिकरूप में, नरकपन और नैरयिकपन, पहले उत्पन्न हो चूके हैं ? (हाँ, गौतम !) उसी प्रकार अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हुए हैं । भगवन् ! यह जीव शर्कराप्रभापृथ्वी के पच्चीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में, पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में, यावत् पहले उत्पन्न हो चूका है ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के समान दो आलापक कहने चाहिए । इसी प्रकार यावत् धूमप्रभा-पृथ्वी तक जानना । भगवन् ! क्या यह जीव तमःप्रभापृथ्वी के पाँच कम एक लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पूर्ववत् उत्पन्न हो चूका है ? (हाँ, गौतम !) पूर्ववत् जानना । भगवन् ! यह जीव अधःसप्तमपृथ्वी के पाँच अनुत्तर और महातिमहान महानरकावासों में क्या पूर्ववत् उत्पन्न हो चूके हैं ? (हाँ, गौतम!) शेष सर्व कथन पूर्ववत् जानना।
भगवन् ! क्या यह जीव, असुरकुमारों के चौंसठ लाख असुरकुमारवासों में से प्रत्येक असुरकुमारावास में पृथ्वीकायिकरूप में यावत् वनस्पतिकायिकरूप में, देवरूप में या देवीरूप में अथवा आसन, शयन, भांड, पात्र आदि उपकरणरूप में पहले उत्पन्न हो चूका है ? हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनन्त बार (उत्पन्न हो चूका है) । भगवन् ! क्या सभी जीव (पूर्वोक्तरूप में उत्पन्न हो चूके हैं ?) हाँ, गौतम ! इसी प्रकार है । इसी प्रकार स्तनित-कुमारों तक कहना चाहिए । किन्तु उनके आवासों की संख्या में अन्तर है ।
भन्ते ! क्या यह जीव असंख्यात लाख पृथ्वीकायिक-आवासों में से प्रत्येक पृथ्वीकायिक-आवासमें पृथ्वीकायिकरूपमें यावत् वनस्पतिकायिकरूपमें पहले उत्पन्न हो चूका है ? हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हुआ है। इसी प्रकार सर्वजीवोंके (विषयमें कहना) । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकोंके आवासों जानना ।
भगवन् ! क्या यह जीव असंख्यात लाख द्वीन्द्रिय-आवासों में से प्रत्येक द्वीन्द्रियावास में पृथ्वीकायिकरूप में यावत् वनस्पतिकायिकरूप में और द्वीन्द्रियरूप में पहले उत्पन्न हो चूका है ? हाँ, गौतम ! यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार (उत्पन्न हो चूका है)। इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में (कहना चाहिए) । इसी प्रकार यावत् मनुष्यों तक विशेषता यह है कि त्रीन्द्रियों में यावत वनस्पतिकायिकरूप में, यावत त्रीन्द्रियरूप में, चनरिन्द्रियों में यावत चतुरिन्द्रियरूप में, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में यावत् पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चरूप में तथा मनुष्यों में यावत् मनुष्य-रूप में उत्पत्ति जानना । शेष समस्त कथन द्वीन्द्रियों के समान जानना।
असुरकुमारों की उत्पत्ति) के समान वाणव्यन्तर; ज्योतिष्क तथा सौधर्म एवं ईशान देवलोक तक कहना । भगवन् ! क्या यह जीव सनत्कुमार देवलोक के बारह लाख विमानावासों में से प्रत्येक विमानावास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् पहले उत्पन्न हो चूका है ? (हाँ, गौतम !) सब कथन असुरकुमारों के समान, यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चूके हैं; यहाँ तक कहना । किन्तु वहाँ से देवीरूप में उत्पन्न नहीं हुए । इसी प्रकार सर्व जीवों के विषय में कहना । इसी प्रकार यावत् आनत और प्राणत तथा आरण और अच्युत तक जानना । भगवन् ! क्या यह जीव तीन सौ अठारह ग्रैवेयक विमानावासों में से प्रत्येक विमानावास में पृथ्वीकायिक के रूप में यावत् उत्पन्न हो चूका है ? हाँ, गौतम ! उत्पन्न हो चूका है । भगवन् ! क्या यह जीव पाँच अनुत्तरविमानों में से, यावत् उत्पन्न हो चूका है? हाँ, किन्तु वहाँ (अनन्त बार) देवरूप में, या देवीरूप में उत्पन्न नहीं हुआ । इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में जानना
भगवन् ! यह जीव, क्या सभी जीवों के माता-रूप में, पिता-रूप में, भाई के रूप में, भगिनी के रूप में, पत्नी के रूप में, पुत्र के रूप में, पुत्री के रूप में, तथा पुत्रवधू के रूप में पहले उत्पन्न हो चूका है ? हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चूका है । भगवन् ! सभी जीव क्या इस जीव के माता के रूप में यावत् पुत्रवधू के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? हाँ, गौतम ! सब जीव, इस जीव के माता आदि के रूप में यावत् अनेक बार अथवा अनन्त
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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