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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक पहले उत्पन्न हुए हैं।
भगवन् ! यह जीव क्या सब जीवों के शत्रु रूप में, वैरी रूप में, घातक रूप में, वधक रूप में, प्रत्यनीक रूप में, शत्रु-सहायक रूप में पहले उत्पन्न हुआ है ? हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चूका है । भगवन् ! क्या सभी जीव (इस जीवके पूर्वोक्त शत्रुआदि रूपोंमें) पहले उत्पन्न हो चूके हैं ? हाँ, गौतम ! पूर्ववत् समझना
भगवन् ! यह जीव, क्या सब जीवों के राजा के रूप में, युवराज के रूप में, यावत् सार्थवाह के रूप में पहले उत्पन्न हो चूका है ? गौतम ! अनेक बार या अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चूका है । इस जीव के राजा आदि के रूप में सभी जीवों की उत्पत्ति भी पूर्ववत् ।
भगवन् ! क्या यह जीव, सभी जीवों के दास रूप में, प्रेष्य के रूप में, भृतक रूप में, भागीदार के रूप में, भोगपुरुष के रूप में, शिष्य के रूप में और द्वेष्य के रूप में पहले उत्पन्न हो चूका है ? हाँ, गौतम ! यावत अनेक बार या अनन्त बार (पहले उत्पन्न हो चूका है) । इसी प्रकार सभी जीव, यावत अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चूके हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१२ - उद्देशक-८ सूत्र - ५५२
उस काल और उस समय में गौतम स्वामी ने यावत् पूछा-भगवन् ! महर्द्धिक यावत् महासुख वाला देव च्यव कर क्या दिशरीरी नागों में उत्पन्न होता है ? हाँ. गौतम! होता है। भगवन ! वह वहाँ नाग के भव में अर्चित. वन्दित. पूजित, सत्कारित, सम्मानित, दिव्य, प्रधान, सत्य, सत्यावपातरूप अथवा सन्निहित प्रतिहारक भी होता है? हाँ, गौतम होता है। भगवन् ! क्या वह वहाँ से अन्तररहित च्यव कर सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, यावत् संसार का अन्त करता है ? हाँ, गौतम ! यावत अन्त करता है।
भगवन् ! महर्द्धिक यावत् महासुख वाला देव च्यव कर द्विशरीरी मणियों में उत्पन्न होता है ? नागों के अनसार कहना । भगवन् ! महर्द्धिक यावत् महासुख वाला देव द्विशरीरी वृक्षों में उत्पन्न होता है ? हाँ, गौतम ! उत्पन्न होता है। विशेषता इतनी ही है कि (जिस वृक्ष में वह उत्पन्न होता है, वह अर्चित आदि के अतिरिक्त) यावत् सन्निहित प्रातिहारिक होता है, तथा उस वृक्ष की पीठिका गोबर आदि से लीपी हुई और खड़िया मिट्टी आदि द्वारा उसकी दीवार आदि पोती हुई होने से वह पूजित होता है। शेष पूर्ववत् । सूत्र-५५३
__भगवन् ! यदि वानरवृषभ, बड़ा मूर्गा एवं मण्डूकवृषभ, बड़ा मेंढक ये सभी निःशील, व्रतरहित, गुणरहित, मर्यादा-रहित तथा प्रत्याख्यान-पौषधोपवासरहित हों, तो मृत्यु को प्राप्त हो (क्या) इस रत्नप्रभापृथ्वी में उत्कृष्ट सागरोपम की स्थिति वाले नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न होते हैं ? (हाँ, गौतम ! होते हैं;) क्योंकि उत्पन्न होता हुआ उत्पन्न हुआ, ऐसा कहा जा सकता है । भगवन् ! यदि सिंह, व्याघ्र, यावत् पाराशर-ये सभी शीलरहित इत्यादि पूर्वोक्तवत् क्या उत्पन्न होते हैं ? हाँ, गौतम ! उत्पन्न होते हैं, यावत् उत्पन्न होता हुआ उत्पन्न हुआ ऐसा कहा जा सकता है। भगवन् ! कौआ, गिद्ध, बिलक, मेंढक और मोर-ये सभी शीलरहित, इत्यादि हों तो पूर्वोक्तवत् उत्पन्न होते हैं? हाँ, गौतम ! उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् समझना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१२ - उद्देशक-९ सूत्र-५५४
भगवन् ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! देव पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा-भव्यद्रव्यदेव, नरदेव, धर्मदेव, देवाधिदेव, भावदेव ।
भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव, भव्यद्रव्यदेव किस कारण से कहलाते हैं ? गौतम ! जो पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक अथवा मनुष्य, देवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे भविष्य में भावीदेव होने के कारण भव्यद्रव्यदेव कहलाते हैं। भगवन् ! नरदेव नरदेव क्यों कहलाते हैं ? गौतम ! जो ये राजा, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में समुद्र तथा उत्तर में हिमवान् पर्वत
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मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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