________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक समुद्घात तक । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील को समझना । भगवन् ! कषायकुशील के ? गौतम ! छह समुद्घात हैं, वेदनासमुद्घात से लेकर आहारकसमुद्घात तक । भगवन् ! निर्ग्रन्थ के ? गौतम ! एक भी समुदघात नहीं होता। भगवन् ! स्नातक के? गौतम ! केवल एक केवलिसमुदघात है। सूत्र - ९३२
भगवन् ! पुलाक लोक के संख्यातवे भाग में होते हैं, असंख्यातवे भाग में होते हैं, संख्यातभागों में होते हैं, असंख्यातभागों में होते हैं या सम्पूर्ण लोक में होते हैं ? गौतम ! वह लोक के संख्यातवे भाग में नहीं होते, किन्तु
ग में होते हैं. संख्यातभागों में असंख्यातभागों में या सम्पर्ण लोक में नहीं होते हैं । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ तक समझ लेना । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह लोक के संख्यातवे भाग में और संख्यातभागों में नहीं होता, किन्तु असंख्यातवे भाग में, असंख्यात भागों में या सर्वलोक में होता है। सूत्र - ९३३
भगवन् ! पुलाक लोक के संख्यातवें भाग को स्पर्श करता है या असंख्यातवे भाग को ? अवगाहना के समान, स्पर्शना के विषय में भी यावत् स्नातक तक जानना। सूत्र-९३४
भगवन् ! पुलाक किस भाव में होता है ? गौतम ! वह क्षायोपशमिक भाव में होता है । इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक जानना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! औपशमिक या क्षायिक भाव में । भगवन् ! स्नातक ? वह क्षायिक भाव में होता है। सूत्र-९३५
भगवन् ! पुलाक एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! प्रतिपद्यमान पूर्व प्रतिपन्न दोनों अपेक्षा पुलाक कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं। पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा भी पुलाक कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्र पृथक्त्व होते हैं । भगवन् ! बकुश एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा बकुश कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं भी होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा बकुश जघन्य और उत्कृष्ट कोटिशतपृथक्त्व होते हैं । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील जानना।।
भगवन् ! कषायकुशील एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा कषायकुशील कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व होते हैं। पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा कषायकुशील जघन्य और उत्कृष्ट कोटिसहस्रपृथक्त्व होते हैं । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं भी होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट एक सौ बासठ होते हैं । उनमें से क्षपकश्रेणी वाले १०८ और उपशमश्रेणी वाले ५४, यों दोनों मिलकर १६२ होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा निर्ग्रन्थ कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा वे कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट एक सौ आठ होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा स्नातक जघन्य और उत्कृष्ट कोटिपृथक्त्व होते हैं।
भगवन् ! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवनाकुशील, कषायकुशील, निर्ग्रन्थ, स्नातक, इनमें से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े निर्ग्रन्थ हैं, उनसे पुलाक संख्यात-गुणे, उनसे स्नातक संख्यातगुणे, उनसे बकुश संख्यात-गुणे, उनसे प्रतिसेवनाकुशील संख्यात-गुणे और उनसे कषायकुशील संख्यात-गुणे हैं।
शतक-२५ - उद्देशक-७ सूत्र-९३६
भगवन् ! संयत कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच, सामायिक-संयत, छेदोपस्थापनिक-संयत, परिहार
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 202