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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक विशुद्धि-संयत, सूक्ष्मसम्पराय-संयत और यथाख्यात-संयत । भगवन् ! सामायिक-संयत कितने प्रकार का है ? गौतम! दो, इत्वरिक और यावत्कथिक । भगवन् ! छेदोपस्थापनिक-संयत ? गौतम ! दो, सातिचार और निरतिचार भगवन् ! परिहारविशुद्धिक-संयत ? गौतम ! दो, निर्विशमानक और निर्विष्टकायिक | भगवन् ! सूक्ष्मसम्पराय-संयत ? गौतम ! दो, संक्लिश्यमानक और विशुद्धयमानक । भगवन् ! यथाख्यात-संयत ? गौतम ! दो, छद्मस्थ और केवली। सूत्र - ९३७
सामायिक-चारित्र को अंगीकार करने के पश्चात् चातुर्याम-रूप अनुत्तर धर्म का जो मन, वचन और काया से त्रिविध पालन करता है. वह सामायिक-संयत है। सूत्र-९३८
प्राचीन पर्याय को छेद करके जो अपनी आत्मा को पंचमहाव्रत धर्म में स्थापित करता है, वह छेदोपस्थापनीय-संयत कहलाता है। सूत्र - ९३९
जो पंचमहाव्रतरूप अनुत्तर धर्म को मन, वचन और काया से त्रिविध पालन करता हुआ आत्म-विशुद्धि धारण करता है, वह परिहारविशुद्धिक-संयत कहलाता है। सूत्र- ९४०
जो सूक्ष्म लोभ का वेदन करता हुआ उपशमक होता है, अथवा क्षपक होता है, वह सूक्ष्मसम्पराय-संयत होता है। यह यथाख्यात-संयत से कुछ हीन होता है। सूत्र - ९४१
मोहनीयकर्म उपशान्त या क्षीण हो जाने पर जो छद्मस्थ या जिन होता है, वह यथाख्यात-संयत कहलाता है। सूत्र-९४२
भगवन् ! सामायिकसंयत सवेदी होता है या अवेदी ? गौतम ! वह सवेदी भी होता है और अवेदी भी । यदि वह सवेदी होता है, आदि सभी कथन कषायकुशील के अनुसार कहना । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत में भी जानना । परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन पुलाक समान । सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन निर्ग्रन्थ समान है।
भगवन् ! सामायिकसंयत सराग होता है या वीतराग ? गौतम ! वह सराग होता है, वीतराग नहीं होता है। इसी प्रकार सूक्ष्मसम्परायसंयत-पर्यन्त कहना चाहिए । यथाख्यातसंयत का कथन निर्ग्रन्थ के समान जानना चाहिए।
भगवन् ! सामायिकसंयत स्थितकल्प में होता है या अस्थितकल्प में ? गौतम ! वह स्थितकल्प में भी होता है और अस्थितकल्प में भी होता है । भगवन् ! छेदोपस्थापनिकसंयत ? गौतम ! वह स्थितकल्प में होता है, अस्थितकल्प में नहीं होता है । इसी प्रकार परिहार-विशुद्धिसंयत में भी समझना । शेष दो-सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन सामायिकसंयत के समान जानना।
भगवन् ! सामायिकसंयत जिनकल्प में होता है, स्थविरकल्प में होता है या कल्पातीत में होता है ? गौतम! वह जिनकल्प में होता है, इत्यादि कषायकुशील के समान जानना । छेदोपस्थापनिक और परिहारविशुद्धिक-संयत के सम्बन्धमें बकुश के समान जानना । शेष दो-सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत निर्ग्रन्थ के समान समझना। सूत्र-९४३
भगवन् ! सामायिकसंयत पुलाक होता है, अथवा बकुश, यावत् स्नातक होता है ? गौतम ! वह पुलाक, बकुश यावत् कषायकुशील होता है, किन्तु निर्ग्रन्थ और स्नातक नहीं होता है । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय जानना । भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत ? गौतम ! वह केवल कषायकुशील होता हे । इसी प्रकार सूक्ष्मसम्पराय संयत में भी समझना । भगवन् ! यथाख्यातसंयत ? वह केवल निर्ग्रन्थ या स्नातक होता है।
भगवन् ! सामायिकसंयत प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! वह प्रतिसेवी भी होता है और
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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