________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक नोसंज्ञोपयुक्त होता है। भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त भी होता है और नोसंज्ञोपयुक्त भी होता है । इसी प्रकार प्रतिसेवना और कषाय भी जानना कुशील । कषायकुशील के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। निर्ग्रन्थ और स्नातक को पुलाक के समान नोसंज्ञोपयुक्त कहना चाहिए। सूत्र-९२६
भगवन् ! पुलाक आहारक होता है अथवा अनाहारक होता है ? गौतम ! वह आहारक होता है, अनाहारक नहीं होता है । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ तक कहना चाहिए । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह आहारक भी होता है और अनाहारक भी होता है। सूत्र-९२७
भगवन् ! पुलाक कितने भव ग्रहण करता है ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन भव । भगवन् ! बकुश? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट आठ। इसी प्रकार प्रतिसेवन और कषाय कुशील है। कषायकुशील भी इसी प्रकार है। निर्ग्रन्थ पुलाक के समान है । भगवन् ! स्नातक ? वह एक भव ग्रहण करता है। सूत्र-९२८
__ भगवन् ! पुलाक के एकभव-ग्रहण-सम्बन्धी आकर्ष कितने कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन आकर्ष | भगवन् ! बकुश ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट सैकड़ों आकर्ष होते हैं । इसी प्रकार प्रतिसेवना और कषायकुशील को भी जानना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट दो आकर्ष होते हैं । भगवन् ! स्नातक के ? गौतम ! उसको एक ही आकर्ष होता है।
भगवन् ! पुलाक के नाना-भव-ग्रहण-सम्बन्धी आकर्ष कितने होते हैं ? गौतम ! जघन्य दो और उत्कृष्ट सात । भगवन् ! बकुश के ? जघन्य दो और उत्कृष्ट सहस्रों । इसी प्रकार कषायकुशील तक कहना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ के ? गौतम! जघन्य दो और उत्कृष्ट पाँच । भगवन् ! स्नातक के? गौतम ! एक भी आकर्ष नहीं होता। सूत्र-९२९
भगवन् ! पुलाकत्व काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त । भगवन् ! बकुशत्व ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटिवर्ष तक रहता है । इसी प्रकार प्रति-सेवना
और कषायकुशील को समझना । भगवन् ! निर्ग्रन्थत्व ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त। भगवन् ! स्नाकत्व ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटिवर्ष तक रहता है।
भगवन् ! बहुत पुलाक कितने काल तक रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त । भगवन् ! बहुत बकुश ? गौतम ! सर्वकाल । इसी प्रकार कषायकशीलों तक जानना । निर्ग्रन्थों पलाकों के समान । स्नातकों बकुशों के समान हैं। सूत्र - ९३०
भगवन् ! (एक) पुलाक का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का होता है । (अर्थात्) अनन्त अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल का और क्षेत्र की अपेक्षा देशोन अपार्द्ध पुदगलपरावर्तन का । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ तक जानना । भगवन् ! स्नातक का? गौतम ! उसका अन्तर नहीं होता।
भगवन् ! (अनेक) पुलाकों का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट संख्यात वर्षों का । भगवन् ! बकुशों का ? गौतम ! उनका अन्तर नहीं होता । इसी प्रकार कषायकुशीलों तक का कथन जानना । भगवन् ! निर्ग्रन्थों का ? गौतम ! उनका अन्तर जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट छह मास का है। स्नातकों का अन्तर बकुशों के समान है। सूत्र - ९३१
भगवन् ! पुलाक के कितने समुद्घात कहे हैं ? गौतम ! तीन समुद्घात-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात | भगवन् ! बकुश के ? गौतम ! पाँच समुद्घात कहे हैं, वेदनासमुद्घात से लेकर तैजस
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 201