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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक स्नातक कितने काल तक अवस्थितपरिणामी रहता है ? जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि वर्ष । सूत्र-९२१
भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! वह आयुष्यकर्म को छोड़कर सात कर्मप्र-कृतियाँ बाँधता है । भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह सात अथवा आठ कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है । यदि सात कर्म-प्रकृतियाँ बाँधता है, तो आयुष्य को छोड़कर शेष सात और यदि आयुष्यकर्म बाँधता है तो सम्पूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों को बाँधता है । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील को समझना । भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है । सात बाँधता हुआ आयुष्य के अतिरिक्त शेष सात | आठ बाँधता हुआ परिपूर्ण आठ कर्मप्रकृतियाँ और छह बाँधता हुआ आयुष्य और मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! वह एकमात्र वेदनीयकर्म बाँधता है । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह एक कर्मप्रकृति बाँधता है, अथवा अबन्धक होता है। एक कर्मप्रकृति बाँधता हैं तो वेदनीयकर्म बाँधता है। सूत्र- ९२२
भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! नियम से आठों कर्मप्रकृतियों का । इसी प्रकार कषायकुशील तक कहना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! मोहनीयकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। भगवन् ! स्नातक? गौतम! वह वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र इन चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है सूत्र - ९२३
भगवन ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? गौतम ! वह आयुष्य और वेदनीय के सिवाय शेष छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है । भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है । सात की उदीरणा करता हुआ आयुष्य को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों को, आठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों की तथा छह की उदीरणा करता है तो आयुष्य और वेदनीय को छोड़कर छह की उदीरणा करता है। इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील जानना।
कषायकुशील ? गौतम ! वह सात, आठ, छह या पाँच कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है । सात की उदीरणा करता है तो आयुष्य को छोड़कर सात, आठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण आठ, छह की उदीरणा करता है तो आयुष्य और वेदनीय को छोड़कर शेष छह तथा पाँच की उदीरणा करता है तो आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़कर, शेष पाँच की उदीरणा करता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! पाँच अथवा दो । जब वह पाँच की उदीरणा करता है तब आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़कर शेष पाँच और दो की उदीरणा करता है तो नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! दो की अथवा बिलकुल उदीरणा नहीं करता । जब दो की उदीरणा करता है तो नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है। सूत्र - ९२४
भगवन् ! पुलाक, पुलाकपन को छोड़ता हुआ क्या छोड़ता है और क्या प्राप्त करता है ? गौतम ! वह पुलाकपन का त्याग करता है और कषायकुशीलपन या असंयम को प्राप्त करता है। भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह बकुशत्व का त्याग करता है और प्रतिसेवनाकुशीलत्व, कषायकुशीलत्व, असंयम या संयमासंयम को प्राप्त करता है। भगवन् ! प्रतिसेवनाकुशील ? गौतम ! वह प्रतिसेवनाकुशीलत्व को छोड़ता है और बकुशत्व, कषाय-कुशीलत्व, असंयम या संयमासंयम को पाता है । भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह कषायकुशीलत्व को छोड़ता है और पुलाकत्व, बकुशत्व, प्रतिसेवनाकुशीलत्व, निर्ग्रन्थत्व, असंयम अथवा संयासंयम को प्राप्त करता है। भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! वह निर्ग्रन्थता को छोड़ता है और कषायकुशीलत्व, स्नाकत्व या असंयम को प्राप्त करता है । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! स्नातक, स्नातकत्व को छोड़ता है और सिद्धगति को प्राप्त करता है। सूत्र - ९२५
भगवन् ! पुलाक संज्ञोपयुक्त होता है अथवा नोसंज्ञोपयुक्त होता है ? गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त नहीं होता,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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