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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक सूत्र-९१६
भगवन् ! पुलाक सयोगी होता है या अयोगी होता है ? गौतम ! वह सयोगी होता है, अयोगी नहीं होता है । भगवन् ! यदि वह सयोगी होता है तो क्या वह मनोयोगी होता है, वचनयोगी होता है या काययोगी होता है ? गौतम! तीनो योग वाला होता है। इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ तक जानना चाहिए । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह सयोगी भी होता है और अयोगी भी । भगवन् ! यदि वह सयोगी होता है तो क्या मनोयोगी होता है ? इत्यादि प्रश्न। पुलाक के समान है। सूत्र-९१७
भगवन् ! पुलाक साकारोपयोगयुक्त होता है या अनाकारोपयोगयुक्त होता है ? गौतम ! वह साकारोपयोगयुक्त भी होता है और अनाकारोपयोगयुक्त भी होता है। इसी प्रकार यावत् स्नातक तक कहना चाहिए। सूत्र - ९१८
भगवन् ! पुलाक सकषायी होता है या अकषायी होता है ? गौतम ! वह सकषायी होता है, अकषायी नहीं होता । भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है, तो कितने कषायों में होता है ? गौतम ! वह चारों कषायों में होता है। इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवनाकुशील को भी जानना । भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह सकषायी होता है । भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है, तो कितने कषायों में होता है ? गौतम ! वह चार, तीन, दो या एक कषाय में होता है। चार कषायों में होने पर संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ । तीन कषाय में संज्वलन मान, माया और लोभ । दो कषायों में संज्वलन माया और लोभ और एक कषाय में होने पर संज्वलन लोभ में होता है।
भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! वह अकषायी होता है । भगवन् ! यदि निर्ग्रन्थ अकषायी होता है तो क्या उपशान्तकषायी होता है, अथवा क्षीणकषायी होता है ? गौतम ! वह उपशान्तकषायी भी होता है और क्षीणकषायी भी । स्नातक के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष यह है कि वह क्षीणकषायी होता है। सूत्र-९१९
भगवन् ! पुलाक सलेश्य होता है या अलेश्य होता है ? गौतम ! वह सलेश्य होता है अलेश्य नहीं होता है । भगवन् ! यदि वह सलेश्य होता है तो कितनी लेश्याओं में होता है ? गौतम ! वह तीन विशुद्ध लेश्याओं में होता है, यथा-तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या में । इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवना कुशील जानना । भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह सलेश्य होता है । भगवन् ! यदि वह सलेश्य होता है, तो कितनी लेश्याओं में होता है ? गौतम ! वह छहों लेश्याओं में होता है, यथा-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या में | भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! वह सलेश्य होता है । भगवन् ! यदि निर्ग्रन्थ सलेश्य होता है, तो में होता है ? गौतम ! निर्ग्रन्थ एकमात्र शुक्ललेश्या में होता है । भगवन् ! स्नातक ? वह सलेश्य भी होता है, और अलेश्य भी । भगवन् ! यदि स्नातक सलेश्य होता है, तो वह कितनी लेश्याओं में होता है ? गौतम ! वह एक परम शुक्ललेश्या में होता है। सूत्र-९२०
भगवन् ! पुलाक, वर्द्धमानपरिणामी होता है, हीयमानपरिणामी होता है अथवा अवस्थितपरिणामी होता है? तीनों में होता है । इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक जानना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! वह वर्द्धमान और अवस्थित परिणाम वाला होता है। इसी प्रकार स्नातक के । भगवन ! पुलाक कितने काल तक वर्द्धमान-परिणाम में होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त । भगवन् ! वह कितने काल तक हीयमान परिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त । भगवन् ! वह कितने काल तक अवस्थित परिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट सात समय । इसी प्रकार कषायकुशील तक जानना।
भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने काल तक वर्द्धमानपरिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त । वन् ! निर्ग्रन्थ कितने काल तक अवस्थितपरिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्त-र्मुहर्त्त । भगवन् ! स्नातक कितने काल तक वर्द्धमानपरिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त । भगवन् !
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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