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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक सुषमाकाल में नहीं होता, किन्तु सुषम-दुःषमा और दुःषम-सुषमाकाल में होता है तथा दुःषमाकाल एवं दुःषमदुःषमाकाल में वह नहीं होता । सद्भाव की अपेक्षा वह सुषम-सुषमा, सुषमा तथा दुःषम-दुःषमाकाल में नहीं होता, किन्तु सुषम-दुःषमा, दुःषम-सुषमा एवं दुःषमाकाल में होता है । भगवन् ! यदि पुलाक उत्सर्पिणीकाल में होता है, तो क्या दुःषम-दुःषमामाल में होता है यावत् सुषम-सुषमाकाल में होता है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा दुःषम-दुःषमाकाल में नहीं होता, वह दुःषमाकाल में, दुःषम-सुषमाकाल में या सुषम-दुःषमाकाल में होता है, किन्तु सुषमाकाल में तथा सुषम-सुषमाकाल में नहीं होता । सद्भाव की अपेक्षा वह दुःषम-दुःषमाकाल में, दुःषमाकाल में, सुषमाकाल में तथा सुषम-सुषमाकाल में नहीं होता, किन्तु दुःषम-सुषमाकाल में या सुषम-दुःषमाकाल में होता है । भगवन् ! यदि (पुलाक) नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है तो क्या वह सुषम-सुषम-समानकाल में, या यावत् दुःषम-सुषमासमानकाल में होता है ? गौतम ! जन्म और सदभाव की अपेक्षा वह दःषम-सुषमा-समान काल में होता है।
भगवन ! बकश किस काल में होता है ? गौतम ! वह अवसर्पिणीकाल में, उत्सर्पिणीकाल में अथवा नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है । भगवन् ! यदि बकुश अवसर्पिणीकाल में होता है तो क्या सुषमसुषमाकाल में होता है ? इत्यादि । गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा (वह) सुषम-दुःषमाकाल में, दुःषमसुषमाकाल में या दुःषमकाल में होता है । संहरण की अपेक्षा किसी भी काल में होता है । भगवन् ! यदि (बकुश) उत्सर्पिणीकाल में होता है तो क्या दुःषम-दुःषमाकाल में होता है ? इत्यादि । गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा सब पुलाक के समान जानना । संहरण की अपेक्षा किसी भी काल में होता है। भगवन् ! यदि बकुश नो-अवसर्पिणीनोउत्सर्पिणीकाल में होता है तो किस आरे में होता है ? गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा सब पुलाक के समान कहना चाहिए । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील के विषय में कहना । निर्ग्रन्थ और स्नातक का कथन भी पुलाक के समान है। विशेष यह सहकरण की अपेक्षा ये सर्वकाल में होते हैं। सूत्र-९१३
भगवन् ! पुलाक मरकर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में । भगवन् ! यदि वह देवगति में जाता है तो क्या भवनपत्तियों में उत्पन्न होता है या वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह केवल वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है । वैमानिक देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट सहस्रारकल्प में उत्पन्न होता है । बकुश और प्रतिसेवनाकुशील में यही जानना । किन्तु वह उत्कृष्टतः अच्युत कल्प में उत्पन्न होता है । कषायकुशील की वक्तव्यता पुलाक के समान है, विशेष यह है कि वह उत्कृष्टतः अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! पूर्ववत् यावत् अजघन्य अनुत्कृष्ट अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होता है। भगवन् ! स्नातक मृत्यु प्राप्त कर किस गति में जाता है ? गौतम ! सिद्धिगति में।
भगवन् ! देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक क्या इन्द्ररूप में उत्पन्न होता है या सामानिकदेवरूप में, त्रायस्त्रिंशरूप में लोकपालरूप में, अथवा अहमिन्द्ररूप में ? गौतम ! अविराधना की अपेक्षा वह इन्द्ररूप में, सामानिक रूप में, त्रायस्त्रिंशरूप में अथवा लोकपाल के रूप में उत्पन्न होता है, किन्तु अहमिन्द्ररूप में उत्पन्न नहीं होता । विराधना की अपेक्षा अन्यतर देव में उत्पन्न होता है। इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवनाकुशील को समझना । भगवन् कषायकुशील ? गौतम ! अविराधना की अपेक्षा वह इन्द्ररूप यावत् अहमिन्द्ररूप में उत्पन्न होता है । विराधना की अपेक्षा अन्यतरदेव में उत्पन्न होता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! अविराधना की (अपेक्षा) अहमि-न्द्ररूप में उत्पन्न होता है । विराधना की अपेक्षा वह किसी भी देवरूप में उत्पन्न होता है।
भगवन् ! देवलोकों में उत्पन्न होते हुए पुलाक की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! जघन्य पल्योपमपृथक्त्व की और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम की है । भगवन् ! बकुश की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपमपृथक्त्व की और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की है। इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील में जानना । भगवन् ! कषाय-कुशील की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपमपृथक्त्व की और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ की स्थिति ? गौतम! अजघन्य-अनुत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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