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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक भगवन् ! कषायकुशील सवेदी होता है, या अवेदी होता है ? गौतम ! वह सवेदी भी होता है और अवेदी भी। भगवन् ! यदि वह अवेदी होता है तो क्या वह उपशान्तवेदी होता है, अथवा क्षीणवेदी होता है ? गौतम ! वह उपशान्तवेदी भी होता है, और क्षीणवेदी भी । भगवन् ! यदि वह सवेदी होता है तो क्या स्त्रीवेदी होता है ? इत्यादि। गौतम ! तीनों ही वेदों में होते हैं । भगवन् ! निर्ग्रन्थ सवेदी होता है, या अवेदी होता है ? गौतम ! वह अवेदी होता है। भगवन् ! यदि निर्ग्रन्थ अवेदी होता है, तो क्या वह उपशान्तवेदी होता है, या क्षीणवेदी होता है ? गौतम ! दोनो । भगवन् स्नातक सवेदी होता है, या अवेदी होता है ? इत्यादि । गौतम ! स्नातक अवेदी होता है, किन्तु वह क्षीणवेदी होता है। सूत्र - ९०२
भगवन ! पलाक सराग होता है या वीतराग? गौतम ! वह सराग होता है, वीतराग नहीं होता है। इसी प्रकार कषायकुशील तक जानना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ सराग होता है या वीतराग होता है ? गौतम ! वह वीतराग होता है । (भगवन!) यदि वह वीतराग होता है तो क्या उपशान्तकषाय वीतराग होता है या क्षीणकषाय वीतराग होता है ? गौतम दोनो । स्नातक के विषय में भी इसी प्रकार जानना । किन्तु क्षीणकषायवीतराग होता है। सूत्र-९०३
भगवन् ! पुलाक स्थितकल्प में होता है, अथवा अस्थितकल्प में होता है ? गौतम ! वह स्थितकल्प में भी होता है और अस्थितकल्प में भी होता है। इसी प्रकार यावत् स्नातक तक जानना । भगवन् ! पुलाक जिनकल्प में होता है, स्थविरकल्प में होता है अथवा कल्पातीत में होता है ? गौतम ! वह स्थविरकल्प में होता है । भगवन् ! बकुश जिनकल्प में होता है ? इत्यादि पृच्छा । गौतम ! वह जिनकल्प में भी होता है, स्थविरकल्प में भी होता है । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील समझना । भगवन् ! कषायकुशील जिनकल्प में होता है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वह जिनकल्प में भी होता है, स्थविरकल्प में भी और कल्पातीत में भी होता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ जिनकल्प में होता है, स्थविरकल्प में या कल्पातीत होता है ? गौतम ! वह कल्पातीत होता है। इसी प्रकार स्नातक को जानना। सूत्र-९०४
भगवन् ! पुलाक सामायिकसंयम से, छेदोपस्थापनिकसंयम, परिहारविशुद्धिसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम में अथवा यथाख्यातसंयम में होता है ? गौतम ! वह सामायिकसंयम में या छेदोपस्थापनिकसंयम में होता है, किन्तु परिहारविशुद्धि संयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम या यथाख्यातसंयम में नहीं होता । बकुश और प्रतिसेवना कुशील के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार समझना | भगवन् ! कषायकुशील किस संयमों में होता है ? गौतम ! वह सामायिक से लेकर सूक्ष्मसम्परायसंयम तक होता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ किस संयम में होता है ? गौतम ! वह एकमात्र यथाख्यातसंयम में होता है। इसी प्रकार स्नातक में समझना। सूत्र-९०५
भगवन् ! पुलाक प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! पुलाक प्रतिसेवी होता है, अप्रतिसेवी नहीं होता है । भगवन् ! यदि वह प्रतिसेवी होता है, तो क्या वह मूलगुण-प्रतिसेवी होता है, या उत्तरगुण-प्रतिसेवी होता है ? गौतम ! दोनो । यदि वह मूलगुणों का प्रतिसेवी होता है तो पाँच प्रकार के आश्रवों में से किसी एक आश्रव का प्रतिसेवन करता है और उत्तरगुणों का प्रतिसेवी होता है तो दस प्रकार के प्रत्याख्यानों में से किसी एक प्रख्याख्यान का प्रतिसेवन करता है । भगवन् ! बकुश प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! वह प्रतिसेवी होता है। भगवन् ! यदि वह प्रतिसेवी होता है, तो क्या मूलगुण प्रतिसेवी होता है या उत्तरगुण-प्रतिसेवी होता है ? गौतम ! वह उत्तरगुण-प्रतिसेवी होता है । और दस में से किसी एक प्रत्याख्यान का प्रतिसेवी होता है । प्रतिसेवनाकुशील का कथन पुलाक के समान जानना । भगवन् ! कषायकुशील प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! वह अप्रतिसेवी होता है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ और स्नातक में जानना । सूत्र-९०६
भगवन् ! पुलाक में कितने ज्ञान होते हैं ? गौतम ! पुलाक में दो या तीन ज्ञान होते हैं । यदि दो ज्ञान हों तो
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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