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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक सूत्र-८९६
भगवन् ! निगोद कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! दो प्रकार के-निगोद और निगोदजीव । भगवन् ! ये निगोद कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के सूक्ष्मनिगोद और बादरनिगोद । इस प्रकार निगोद को जीवाभिगमसूत्र अनुसार जानना । सूत्र-८९७
भगवन् ! नाम कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! छह प्रकार के औदयिक यावत् सान्निपातिक । भगवन् ! वह औदयिक नाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का उदय और उदयनिष्पन्न । सत्रहवें शतक के प्रथम उद्देशक में जैसे भाव के सम्बन्ध में कहा है, वैसे ही यहाँ कहना । वहाँ भाव के सम्बन्ध में कहा है, जब कि यहाँ नाम के विषय में है। शेष सान्निपातिक-पर्यन्त पूर्ववत । हे भगवन ! यह इसी प्रकार है।
शतक-२५ - उद्देशक-६ सूत्र-८९८
निर्ग्रन्थ सम्बन्धी छत्रीश द्वार हैं, जैसे कि वेद, राग, कल्प, चारित्र, प्रतिसेवना, ज्ञान, तीर्थ, लिंग, शरीर, क्षेत्र, काल, गति, संयम, निकाशर्ष । तथासूत्र-८९९
योग, उपयोग, कषाय, लेश्या, परिणाम, बन्ध, वेद,कर्मों की उदीरणा, उपसंपत, संज्ञा, आहार । तथासूत्र - ९००
भव, आकर्ष,काल, अन्तर, समदघात, क्षेत्र, स्पर्शना, भाव, परिमाण और अल्पबहत्व । सूत्र-९०१
राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक।
भगवन् ! पुलाक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के ज्ञानपुलाक, दर्शनपुलाक, चारित्र-पुलाक, लिंगपुलाक, यथासूक्ष्मपुलाक | भगवन् ! बकुश कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के आभोगबकुश, अनाभोगबकुश, संवृतबकुश, असंवृतबकुश और यथासूक्ष्मबकुश । भगवन् ! कुशील कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील । भगवन् ! प्रतिसेवनाकुशील कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के ज्ञानप्रतिसेवनाकुशील, दर्शनप्रतिसेवनाकुशील, चारित्रप्रतिसेवना-कुशील, लिंगप्रतिसेवनाकुशील और यथासूक्ष्मप्रतिसेवनाकुशील । भगवन् ! कषायकुशील कितने प्रकार के कहे हैं? गौतम ! पाँच प्रकार केज्ञानकषायकुशील, दर्शनकषायकुशील, चारित्रकषायकुशील, लिंगकषायकुशील और पाँचवे यथासूक्ष्मकषायकुशील।
भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के-प्रथम-समय-निर्ग्रन्थ, अप्रथम-समयनिर्ग्रन्थ, चरम-समय-निर्ग्रन्थ, अचरम-समय-निर्ग्रन्थ और पाँचवे यथासूक्ष्मनिर्ग्रन्थ । भगवन् ! स्नातक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के अच्छवि, असबल, अकर्मांश, संशुद्ध-ज्ञान-दर्शनधर अर्हन्त जिन केवली एवं अपरिस्रावी।
भगवन् ! पुलाक सवेदी होता है, अथवा अवेदी होता है ? गौतम ! वह सवेदी होता है, अवेदी नहीं । भगवन् ! यदि पुलाक सवेदी होता है, तो क्या वह स्त्रीवेदी होता है, पुरुषवेदी होता है या पुरुष-नपुंसकवेदी होता है? गौतम ! वह पुरुषवेदी होता है, या पुरुष-नपुंसकवेदी होता है । भगवन् ! बकुश सवेदी होता है, या अवेदी होता है ? गौतम ! बकुश सवेदी होता है । भगवन् ! यदि बकुश सवेदी होता है, तो क्या वह स्त्रीवेदी होता है, पुरुषवेदी होता है, अथवा पुरुषनपुंसकवेदी होता है ? गौतम ! वह स्त्रीवेदी भी होता है, पुरुषवेदी भी अथवा पुरुष-नपुंसक वेदी भी होता है । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील जानना।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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