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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-२४ सूत्र-८३५
चौबीसवें शतक में चौबीस उद्देशक इस प्रकार हैं-उपपात, परिमाण, संहनन, ऊंचाई, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान, योग, उपयोग । तथासूत्र-८३६
संज्ञा, कषाय, इन्द्रिय, समुद्घात, वेदना, वेद, आयुष्य, अध्यवसाय, अनुबन्ध, काय-संवेध । ये बीस द्वार हैं। सूत्र-८३७
यह सब विषय चौबीस दण्डक में से प्रत्येक जीवपद में कहे जायेंगे । इस प्रकार चौबीसवें शतक में चौबीस दण्डक-सम्बन्धी चौबीस उद्देशक कहे जायेंगे।
शतक-२४ - उद्देशक-१ सूत्र-८३८
राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं । (भगवन् !) यदि (नैरयिकजीव) तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से यावत् चतुरिन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, (किन्तु) पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं।
भगवन् ! यदि वे पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, या असंज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से? गौतम ! वे संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से भी । भगवन् ! यदि वे संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या जलचरों से, या स्थलचरों से अथवा खेचरों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जलचरों से, स्थलचरों से तथा खेचरों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । (भगवन् !) यदि वे जलचर, स्थलचर और खेचर जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या पर्याप्त से अथवा अपर्याप्त से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे पर्याप्त से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्त से नहीं।
भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव, जो नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वह कितनी नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वह एक रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है । भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव, जो रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! उनके शरीर किस संहनन वाले होते हैं ? गौतम ! वे सेवार्त्तसंहनन वाले होते हैं। भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग की और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती है।
भगवन् ! उनके शरीर का संस्थान कौन-सा कहा गया है ? गौतम! हण्डकसंस्थान है। भगवन् ! उन जीवों के कितनी लेश्याएं कही गई हैं ? गौतम ! तीन लेश्याएं हैं-कृष्ण, नील, कापोत । भगवन् ! वे जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि होते हैं ? गौतम ! वे सम्यग्दृष्टि नहीं होते, मिथ्यादृष्टि होते हैं, सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते । भगवन् ! वे जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? गौतम ! वे ज्ञानी नहीं होते; अज्ञानी होते हैं, उनके अवश्य दो अज्ञान होते हैं, यथा-मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान । भगवन् ! वे जीव मनोयोगी होते हैं, या वचनयोगी अथवा काययोगी होते हैं? गौतम ! वे मनोयोगी नहीं, (किन्तु) वचनयोगी और काययोगी होते हैं। भगवन् !
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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