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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-२३ सूत्र- ८२९
भगवद्वाणीरूप श्रुतदेवता भगवती को नमस्कार हो । तेईसवे शतक में पाँच वर्ग हैं-आलुक, लोही, अवक, पाठा और माषपर्णी वल्ली । इस प्रकार पाँच वर्गों के पचास उद्देशक होते हैं।
शतक-२३ - वर्ग-१ सूत्र-८३०
राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! आलू, मूला, अदरक, हल्दी, रुरु, कंडरिक, जीरु, क्षीरविराली, किट्ठि, कुन्दु, कृष्णकडसु, मधु, पयलइ, मधुशृंगी, निरुहा, सर्पसुगन्धा, छिन्नरुहा और बीजरुहा, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ वंशवर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक कहने चाहिए । विशेष यह है कि इनके मूल के रूप में जघन्य एक, दो या तीन, और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात और अनन्त जीव आकर उत्पन्न होते हैं । हे गौतम ! यदि एक-एक समय में, एक-एक जीव का अपहार किया जाए तो अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल तक किए जाने पर भी उनका अपहार नहीं हो सकता; क्योंकि उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की होती है । शेष पूर्ववत् ।
शतक-२३ - वर्ग-२ सूत्र-८३१
भगवन् ! लोही, नीहू, थीहू, थीभगा, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सींउंढी और मुसुंढी इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! आलुकवर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक (कहने चाहिए) । विशेष यह है कि इनकी अवगाहना तालवर्ग के समान है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-२३ - वर्ग-३ सूत्र-८३२
भगवन् ! आय, काय, कुहणा, कुन्दुक्क, उव्वेहलिय, सफा, सज्झा, छत्ता, वंशानिका और कुरा; इन वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? गौतम ! आलूवर्ग के मूलादि समग्र दस उद्देशक कहने चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-२३ - वर्ग-४ सूत्र- ८३३
____ भगवन् ! पाठा, मृगवालुंकी, मधुररसा, राजवल्ली, पद्मा, मोढरी, दन्ती और चण्डी, इन वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आते हैं ? गौतम ! आलूवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना वल्लीवर्ग के समान समझनी चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-२३ - वर्ग-५ सूत्र-८३४
भगवन् ! माषपर्णी, मुद्गपर्णी, जीवक, सरसव, करेणुका, काकोली, क्षीरकाकोली, भंगी, णही, कृमिराशि, भद्रमुस्ता, लाँगली, पयोदकिण्णा, पयोदलता, हरेणुका और लोही, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) आलुकवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहना । इस प्रकार इन पाँचों वर्गों के कुल पचास उद्देशक कहने चाहिए । विशेष यह है कि इन पाँचों वर्गों में कथित वनस्पतियों के सभी स्थानोंमें देव आकर उत्पन्न नहीं होते; इसलिए इन सबमें तीन लेश्याएं जाननी चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है
शतक-२३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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