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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक कईं नहीं मरते तथा कईं पीस जाते हैं और कईं नहीं पीसे जाते । गौतम ! पृथ्वी-कायिक जीव के शरीर की इतनी बड़ी अवगाहना होती है।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव को आक्रान्त करने पर वह कैसी वेदना का अनुभव करता है ? गौतम ! जैसे कोई तरुण, बलिष्ठ यावत् शिल्प में निपुण हो, वह किसी वृद्धावस्था से जीर्ण, जराजर्जरित देह वाले यावत् दुर्बल, ग्लान के सिर पर मुष्टि से प्रहार करे तो उस पुरुष द्वारा मुक्का मारने पर वृद्ध कैसी पीड़ा का अनुभव करता है ? (गौतम-) आयुष्मन् श्रमणवर ! भगवन् ! वह वृद्ध अत्यन्त अनिष्ट पीड़ा का अनुभव करता है । (भगवान-) इसी प्रकार, हे गौतम ! पथ्वीकायिक जीव को आक्रान्त किये जाने पर, वह उस वृद्धपुरुष को होने वाली वेदना की अपेक्षा अधिक अनिष्टतर यावत् अमनामतर पीड़ा का अनुभव करता है। भगवन् ! अप्कायिक जीव को स्पर्श या घर्षण किये जाने पर वह कैसी वेदना का अनुभव करता है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान अप्काय के जीवों को जानना । इसी प्रकार अग्निकाय, वायुकायिक एवं वनस्पतिकाय में जानना । भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१९ - उद्देशक-४ सूत्र-७६५
भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, महावेदना, अल्पनिर्जरावाले हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसे होते हैं । भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना, महानिर्जरावाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन् ! क्या नैरयिक महास्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना, अल्पनिर्जरावाले हैं? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं
भगवन् ! नैरयिक महास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक महास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना तथा अल्पनिर्जरा वाले होते हैं ? यह अर्थ भी समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक महास्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना एवं महानिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! नैरयिक महास्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले होते हैं ? यह अर्थ भी समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्रव, महाक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पासव, महाक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? यह अर्थ भी समर्थ नहीं है
भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पासव, महाक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन ! क्या नैरयिक अल्पासव, महाक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले होते हैं? समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना, महानिर्जरावाले हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना, अल्पनिर्जरावाले हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! नैरयिक अल्पास्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना, महानिर्जरावाले होते हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! नैरयिक कदाचित् अल्पास्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना, अल्पनिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । ये सोलह भंग हैं
भगवन् ! क्या असुरकुमार महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इस प्रकार यहाँ केवल चतुर्थ भंग कहना चाहिए, शेष पन्द्रह भंगों का निषेध करना चाहिए । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना चाहिए। भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक जीव कदाचित् महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? हाँ, गौतम ! कदाचित् होते हैं । भगवन् ! क्या इसी प्रकार पृथ्वीकायिक यावत् सोलहवे भंग-अल्पास्रव, अल्पक्रिया अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले-कदाचित् होते हैं ? हाँ, गौतम ! वे कदाचित् सोलहवे भंग तक होते हैं । इसी प्रकार मनुष्यों तक जानना चाहिए । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिकों के विषय में असुरकुमारों के समान जानना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१९ - उद्देशक-५ सूत्र-७६६
भगवन् ! क्या नैरयिक चरम (अल्पायुष्क) भी हैं और परम (अधिक आयुष्य वाले) भी हैं ? हाँ, गौतम ! हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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