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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक बादर अप्कायिक की उत्कृष्ट एवं पर्याप्त बादर अप्कायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी एवं विशेषाधिक है। उससे पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादरपृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट तथा पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी तथा विशेषाधिक है । उससे पर्याप्त बादर निगोद की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । अपर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है, और पर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है । उससे पर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । उससे अपर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है और उससे पर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है। सूत्र - ७६३
भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, इन पाँचों में से कौन-सी काय सब से सूक्ष्म है और कौन-सी सूक्ष्मतर है ? गौतम ! वनस्पतिकाय सबसे सूक्ष्म है, सबसे सूक्ष्मतर है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् वायु-कायिक, इन चारों में से कौन-सी काय सबसे सूक्ष्म है और कौन-सी सूक्ष्मतर है ? गौतम ! वायुकाय सब-से सूक्ष्म है, वायुकाय ही सबसे सूक्ष्मतर है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् अग्निकायिक, कौन सी काय सबसे सूक्ष्म है, कौन-सी सूक्ष्मतर है ? गौतम ! अग्निकाय सबसे सूक्ष्म है, अग्निकाय ही सर्वसूक्ष्मतर है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक और अप्कायिक इन दोनों में से कौन-सी काय सबसे सूक्ष्म है, कौन-सी सर्वसूक्ष्मतर है ? गौतम ! अप्काय सबसे सूक्ष्म और सर्वसूक्ष्मतर है।
भगवन् ! इन पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक में से कौन सी काय सबसे बादर है, कौन-सी काय सर्वबादरतर है ? गौतम ! वनस्पतिकाय सर्वबादर है, वनस्पतिकाय ही सबसे अधिक बादर है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् वायुकायिक, इन चारों में से कौन-सी काय सबसे बादर है, कौन-सी बादरतर है ? गौतम ! पृथ्वी-काय सबसे बादर है, पृथ्वीकाय ही बादरतर है । भगवन् ! अप्काय, तेजस्काय और वायुकाय इन तीनों में से कौन-सी काय सर्वबादर है, कौन-सी बादरतर है ? गौतम ! अप्काय सर्वबादर है, अप्काय ही बादरतर है। भगवन् ! अग्निकाय और वायुकाय, इन दोनों कायों में से कौन-सी काय सबसे बादर है, कौन-सी बादरतर है ? गौतम ! अग्निकाय सर्वबादर है, अग्निकाय ही बादरतर है।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों का शरीर कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म वायुकाय का शरीर होता है। असंख्यात सूक्ष्म वायुकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म अग्निकाय का शरीर होता है । असंख्य सूक्ष्म अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म अप्काय का शरीर होता है । असंख्य सूक्ष्म अप्काय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म पृथ्वीकाय का शरीर होता है, असंख्य सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर वायुकाय का शरीर होता है। असंख्य बादर वायुकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर अग्निकाय का शरीर होता है । असंख्य बादर अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर अप्काय का शरीर होता है। असंख्य बादर अप्काय समान एक बादर पृथ्वीकाय का शरीर होता है । हे गौतम ! इतना बड़ा पृथ्वीकाय का शरीर होता है । सूत्र - ७६४
भगवन् ! पृथ्वीकाय के शरीर की कितनी बड़ी अवगाहना कही गई है ? गौतम ! जैसे कोई तरुणी, बलवती, युगवती, युगावय-प्राप्त, रोगरहित इत्यादि वर्णन-युक्त यावत् कलाकुशल, चातुरन्त चक्रवर्ती राजा की चन्दन घिसने वाली दासी हो । विशेष यह है कि यहाँ चर्मेष्ट, द्रुघण, मौष्टिक आदि व्यायाम-साधनों से सुदृढ़ इत्यादि विशेषण नहीं कहना । ऐसी शिल्पनिपुण दासी, चूर्ण पीसने की वज्रमयी कठोर शिला पर, वज्रमय तीक्ष्ण लोढ़े से लाख के गोले के समान, पृथ्वीकाय का एक बड़ा पिण्ड लेकर बार-बार इकट्ठा करती और समेटती हुई- मैं अभी इसे पीस डालती हूँ, यों विचार कर उसे इक्कीस बार पीस देतो हे गौतम! कईं पृथ्वीकायिक जीवों का उस शिला और लोढ़े से स्पर्श होता है और कई पथ्वीकायिक जीवों का स्पर्श नहीं होता । उनमें से कई पथ्वीकायिक जीवों का घर्षण होता है. और कई पृथ्वीकायिकों का घर्षण नहीं होता । उनमें से कुछ को पीड़ा होती है, कुछ को पीड़ा नहीं होती । उनमें से कईं मरते हैं,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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